गिंदी
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गिंदी छौ बगते की
खूब हव्वा भरी चा
लमडणु छौं खुट्टों का बीच
पतड़े गयों कथगा बगत
केबरि ये फाल
केबरि वे फाल
कथको न पकड़ी
कथको न छ्वाड़ी
लुखों न ‘फ़ौल’ भी केरि
लुखों न ‘थ्रो’ भी केरि
जै कु जन मन आयी
तन सब्यून केरि
क्वी जीती क्वी हारी
केनि खुसी अर केनि मनै गम
पर
मी
न
जीती न हारी
अर
मी
रोज
तैयार हवे जांद
नै
मैच खिलण कु
जिंदगी
कु मैदान मा
या
फिर
बगत
कु खिलाण मा
प्रतिबिम्ब
बड़थ्वाल
(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)
गिंदी पर रची रचना भौत भली च!!
जवाब देंहटाएंश्री बड़थ्वाल म्यारा ब्लॉग www.garhwalikavita.blogspot.com मा आपकू हार्दिक स्वागत च।
धन्यवाद