“उड़ जै रे पंछी तू
जै के इति दूर,
पंख लगे के जाई तू
जाई तू फ़ूर-फूर...
मुख मा त्यारा एक तिरण
जन लगदी सौ किरणों की घाम,
त्यारा इन तिरणों से ही हवायी
ये संसार का सारे धाम।
उड़ जै रे पंछी तू ...
त्यारा इन तिरणों को यू घ्वोल
जन लगदी कटोरी सुनै की,
त्यारा इन घ्वोलों से ही
सीख ल्यही ब्रह्मैं की।
उड़ जै रे पंछी तू ...
त्यारा घ्वोलों मा यूं प्वोथील
ज़्वु लगड़ा द्येव स्वरूप,
त्यारा इन प्वोठीलों से ही
बन्यू मन्ख्यैं कौ रूप॥”
© सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनाँक -
०५/०२/२००६
(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)
भौत सुंदर महेंद्र जी .... आनंद आ ई गे
जवाब देंहटाएंNamaskar doston
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