दयब्तौ की खोज !
बोड़ी चौकम छे बैठी ! आंदा जान्दो दगड छे बच्याणी , कि तैबेरी , मेल्या खोलै रामचन्देरी वाख्म एकी बोड़ी से छुई लगाद लगाद पूछंण बैठी
"... हे जी , तुमल भी सुणी ? "
बोड़ी बोली .. "--- क्या ?"
".. ह्या , बुने, क्वाठा भीतर का वो जेवोर , जौकु नौ .... कने लियु उकु नौ " ! बिन्गैकी की बुलद "------ जौक नौ, स्युजू तुमरा देलम बैठुच ! "
बोड़ील वे जाने देखी आर बोली .. " वो कुता सिंह ..! ."
"हांजी, हां ...! " वी--- वी .... "
वीजने घूरी की बोड़ी बोली " ----- कनु क्या ह्वे कुता सिंह थै ? "
" -----सुणम.. आई कि, उकु नाती घोर च बल औणु , अपना दादा प्रददौ कि कुड़ी थै दिखनो अर अपणा नार्सिंग देब्तो कि पुजाई कनु ? "
"---हाँ --- हाँ !" ददल ,त, नि खोजी आज तक अपणी गौंकु बाटु, अपणी पुगाड़ी - पटुली ! ताखुँदै राई ता जिन्दगी भर ! बोई बाटु हेरी २ मोरीगे ! कुड़ी धुर्पाली उजड़ी गीनी !
न उ आयु अर ना नौनी ! द्वी पड़ी तक कैल भी याख्की शुद्ध नि ले ! बोड़ील , सांस लेकी अर वेकि कुड़ी जाने हेरी बोली .... " ब्वारी .. मित बुनू छो कि, यु नर्सिंग इनी ताखुन्दा बस्या लुखो थै भी नाचे नाचे घोर बुलादु ना त कनु छायू ! पैल, ये सबी नौकरी खुज्यणु तखुन्द गिनी ! अर, अब , वो सबी ..., ये जनि अपणा अपणा दय्बतो थै खुज्यानु घोर ऐ जांदा ना..., त , हे पणमेस्वरा .. मी भी त्वेमा सबा रुपया चढाई ध्युलू !
पराशर गौर
दिनाक ४ अगस्त २०१० स्याम ६ ५३ पर
मि उत्तराखँडी छौ - यू शब्द ही अपणा आप ये ब्लाग क बारा मा बताणा कुण काफी छन। अपणी बोलि/भाषा(गढवाली/कुमाऊँनी) मा आप कुछ लिखण चाणा छवा त चलो दग्ड्या बणीक ये सफर मा साथ निभौला। अपणी संस्कृति क दगड जुडना क वास्ता हम तै अपण भाषा/बोलि से प्यार करनु चैंद। ह्वे जाओ तैयार अब हमर दगड .....अगर आप चाहणा छन त जरुर मितै बतैन अर मि आप तै शामिल करि दयूल ये ब्लाग का लेखक का रुप मा। आप क राय /प्रतिक्रिया/टिप्पणी की भी दरकार च ताकि हम अपणी भासा/बोलि क दगड प्रेम औरो ते भी सिखोला!! - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
आज क हालात मा बिल्कुल सही लेखि आपन पराशर जी...
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