बोडी,
अफ़ी अफुम छै बुनी ..
यखका सुचणा छना ..
कि, उन्दु जौला ......
अर तखुन्दा (प्रवासी ) सुचणा छन
कि उबू जौला .....!
मिन बोली , बोडी...,
तू क्या छै सुचणी ?
बोडिल ब्वाळ ...
ना यख वालों न रुकुनु ?
अर , ना ताल वालो ल आणु
गिचा बाबू .. क्या .... ???????
जू बुल्दन बुल्द जा
जू सुचणा छन , सुचुद जा ..
आणा छा, त आवा
जाणा छा , त जावा
पर सुधी सुधी , मी थै
स्वीणा त, नि दिखावा !
पराशर गौर
१८ मई २०१० रात १०२१ पर
कैनाडा
मि उत्तराखँडी छौ - यू शब्द ही अपणा आप ये ब्लाग क बारा मा बताणा कुण काफी छन। अपणी बोलि/भाषा(गढवाली/कुमाऊँनी) मा आप कुछ लिखण चाणा छवा त चलो दग्ड्या बणीक ये सफर मा साथ निभौला। अपणी संस्कृति क दगड जुडना क वास्ता हम तै अपण भाषा/बोलि से प्यार करनु चैंद। ह्वे जाओ तैयार अब हमर दगड .....अगर आप चाहणा छन त जरुर मितै बतैन अर मि आप तै शामिल करि दयूल ये ब्लाग का लेखक का रुप मा। आप क राय /प्रतिक्रिया/टिप्पणी की भी दरकार च ताकि हम अपणी भासा/बोलि क दगड प्रेम औरो ते भी सिखोला!! - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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