बर्षो का बाद ,आज ....
लौटियु मी अपणा मुल्क
सब बन्धनों थै तोडी
सब सरहदों थै लांघी , छोड़ी
ज्युदु ना ........
बल्कि बणीकि राख
माटै कि क्मोलिम !
jab तक ज़िंदा ऱौ
सदान मयारू पहाड़ --------
एक तस्बीर बणी रा
म्यारा मन मा !
जै थै मी , देखीत सकुदु छो
महशुस भी कैरी सकदु छो
पर झणी किलै.........
वख वापस लौटण पर
मेरी मज़बूरी मी थै कैकी मजबूर
मी पर खुटली लगै दीदी छै !
हरिद्वारम,
जनी म्यारा अपणोन
माटे कम्वालीकु मुख खोली
म्यारू रंगुण बोली .....
आजाद ह्वेग्यु आज मी
वी घुट्ली से
एकी अपणी धरती म़ा !
व धरती -----------
जै कि माटिम मिल
लदवडि लस्कै लस्कै
लिस्ग्वारा लगैनी
जै कि म्याल्म मिन
घुटनों क बल चल चली
गुवाय लगैनी ------
जैमा कभी कभी
थाह थाह लींद लींद पतडम पोडू
डंडयालम !
जख ......
ब्वै की खुच्लिम सियु
बे-फिकरी से
भैजी क कन्दोमा चैड्यु
दीदी का हतोमा ह्वली खेली
ददी की ऊँगली पकड़ी च्ल्यु
बाबाजी क खुट्युमाँ धुध भाती खेली
जख ------------
गोरु पांति चरैनी
लुखुकी सग्व्डीयुमा
ककड़ी - मुंगरी चुरैनी
रोज लुखुका औलाणा सुणी !
दख सिर्फ ये बातो च
डंडी कंठी , घाड गदेरा
तमाशा . म्यला ख्याला
सब उनी राला , उनी हवाला
पर मी नि रोलु ....!
जनी मेरी राख
किमोली बीटी भैर आई
और हवा से मिली
उन्मत /स्वछन्द ह्वोकी व
बथो का दगड उडी
एक अंतहीन दिशा की तरफ !
parashar gaur
२१ जनबरी २०१० सुबह १..१३ पर
मि उत्तराखँडी छौ - यू शब्द ही अपणा आप ये ब्लाग क बारा मा बताणा कुण काफी छन। अपणी बोलि/भाषा(गढवाली/कुमाऊँनी) मा आप कुछ लिखण चाणा छवा त चलो दग्ड्या बणीक ये सफर मा साथ निभौला। अपणी संस्कृति क दगड जुडना क वास्ता हम तै अपण भाषा/बोलि से प्यार करनु चैंद। ह्वे जाओ तैयार अब हमर दगड .....अगर आप चाहणा छन त जरुर मितै बतैन अर मि आप तै शामिल करि दयूल ये ब्लाग का लेखक का रुप मा। आप क राय /प्रतिक्रिया/टिप्पणी की भी दरकार च ताकि हम अपणी भासा/बोलि क दगड प्रेम औरो ते भी सिखोला!! - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें