"कुदरतो कहर "
ये बसगाल
येसु बसगाल
भैर /भित्तर , छन्यूमा
पाणी ही पाणी !
जै देखि ,
डनडयली / वबरी हिलिनी
ग़ोउर- ब छु रु कांपा ...
धुर्पल्युमा थर्पियु दयबता डैरी !
कूडी चुइनी / फटली चुइनि
उणी चुइनी / कुणी चुइनी
धुर्पली चुइनी ......
इन चुइनी की, जों देखि
आंखियु का आंसू भी कम पड़गी !
पराशर गौर
सितम्बर २२ . २०१० सुबह १०. ३० बजे
मि उत्तराखँडी छौ - यू शब्द ही अपणा आप ये ब्लाग क बारा मा बताणा कुण काफी छन। अपणी बोलि/भाषा(गढवाली/कुमाऊँनी) मा आप कुछ लिखण चाणा छवा त चलो दग्ड्या बणीक ये सफर मा साथ निभौला। अपणी संस्कृति क दगड जुडना क वास्ता हम तै अपण भाषा/बोलि से प्यार करनु चैंद। ह्वे जाओ तैयार अब हमर दगड .....अगर आप चाहणा छन त जरुर मितै बतैन अर मि आप तै शामिल करि दयूल ये ब्लाग का लेखक का रुप मा। आप क राय /प्रतिक्रिया/टिप्पणी की भी दरकार च ताकि हम अपणी भासा/बोलि क दगड प्रेम औरो ते भी सिखोला!! - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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