द ब्वाला पतै नि !
रुडियु कु घाम
सौंण/भादौ की बस्गाल
पूस /मौ की ठंड
चैत /बैसाखे मौलार
दीदा ....उत ..,
म्यार गौमै ही रैगी !
यखत, न पाणी
न ठंड, न बरखा , न घाम
यखत बस काम ही काम !
यखत,
रात दिनों पते ही नि
कबरी रूडी गे , कबरी सौण
कबगे -पूस /मौ
गे कबरी चैत /बैसाख प्तै नि !
यखत पता च बस ,
कब दींण क्वाटरो किराया
राशन पाणिकु बिल
यु बिल ,वो बिल अर स्यु बिल
कब बितिगे इनमा उम्र पतै नि !
पराशर गौर
दिनाक २९ जनबरी २०११ समय १.४६ दिन्म
मि उत्तराखँडी छौ - यू शब्द ही अपणा आप ये ब्लाग क बारा मा बताणा कुण काफी छन। अपणी बोलि/भाषा(गढवाली/कुमाऊँनी) मा आप कुछ लिखण चाणा छवा त चलो दग्ड्या बणीक ये सफर मा साथ निभौला। अपणी संस्कृति क दगड जुडना क वास्ता हम तै अपण भाषा/बोलि से प्यार करनु चैंद। ह्वे जाओ तैयार अब हमर दगड .....अगर आप चाहणा छन त जरुर मितै बतैन अर मि आप तै शामिल करि दयूल ये ब्लाग का लेखक का रुप मा। आप क राय /प्रतिक्रिया/टिप्पणी की भी दरकार च ताकि हम अपणी भासा/बोलि क दगड प्रेम औरो ते भी सिखोला!! - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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