कुछ याद आई गौं का बारा मा त यू भी याद आई कि उत्तराखंड मा बिठला द्वी शब्दू का प्रयोग करदिन..
"हे जी सुणा" अर "छी भै" त सोची की द्वी शब्द मी भी लेखि दूंय नोंक झोंक
हे जी सुणा
उठो दि घाम ऎ गै
चाय लयो,चिनी की गुड़
लोलि जरा झूठी केरी ले
फिर नी चैणी चीनी न गुड़
छी भै........
हे जी सुणा
सरग च गगराणू
बरखा च हूणी
चल रुझि जौला
गीत हम भी लगोला
छी भै........
हे जी सुणा
कांया मा खैला
भुज्जी मा कि बणो साग
सुणदि! तू इखमा बैठ
तेर कचपोली बणोदु आज
छी भै........
हे जी सुणा
चलो घूमि ओला
भितरा भीतर बौले ग्यों
चल मेरी नारंगी दाणी
ल्योल वापिस यीं मुखडी कू पाणी
छी भै........
हे जी सुणा
कंरी मेरी भी सान
कन छौ मी लगणू
जचणी छै लगणी छै मैडम
भगै कन ली जौ त्वेते
छी भै........
हे जी सुणा
ढलकणी च उमर
क्या मी बुढेग्यो
केन ब्वाल, केकि आंख फुटिन
मेरी लाटी तू स्वाणी छै दिखेणी
छी भै........
हे जी सुणा
रात प्वड़िगे
चलो सै जोला
चुची जुन्ख्यालि च रात
कुछ लगोला छुई़ बात
छी भै........
हे जी सुणा
क्या छां तुम सुचणा
हाथ लगलू तुमर चुसणा
ल्यादि इनै तौ कुंगली हथि
फिर क्या सुचण सिरफ चुसणा
छी भै........
हे जी सुणा
खुद लगी च माँ की
मैत जाण क ज्यू च बुनु
जाणी छै त ज्याले पर
पर मितै तेरी खुद लगली त
छी भै........
(प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल , अबु धाबी यूएई)
(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)