शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

~ खुद मा तेरी ~



[पहले जब एक नव विवाहित युवा परदेश जाता था तो उसका मन कैसे व्याकुल होता था और क्या सोचता था, उस के भावो को सन्देश में जब वह अपनी पत्नी को लिखता था .... चंद पंक्तियों में समेटने का एक प्रयास]


याद तेरी आणी रेंद, किले छौं दूर सवाल मन ते पूछ्णू रेंदू
फोटो देखीक रगरयाणु रेंदू, भुक्की तेरी फोटो मा पीणू रेंदू
नी जणदू कब रात हूंद अर केबरी सुबेर, इन च नौकरी मेरी
बस सम्लौण मा तेरी, नौकरी दगडी ज़िंदगी गुजरनी च मेरी


कबी याद मा मेरी, देखी क सीसा बांद सी तू सजणी त होली
देखी फोटू अर पढ़ीक चिठ्ठी, अपणी जिकुड़ी ते बुथाणी त होली
कबी बणी होली पंदेरी, कबी बणीक घसेरी बौण तू जाणी होली
दुख अपरू  बिसरी कन, सास ससुर क सेवा तू करणी त होली


कुयेडी डांडीयूं म लगणी होली, दगडया मीते तख खुजाणा ह्वाला
डाला बूटा रस्ता दिखणा होला, गोर बछरा छंनियू मा एराणा ह्वाला
बजार दुकान मा रौनक लगी होली, म्याला ख्याला बुलाणा ह्वाला
देबी दिबता म्यार देसा क खुस ह्वाला, ढोल दामों खूब बजणा ह्वाला


ओलू छुट्टी जब त्वेते मी घुमोलू, कपडा-लता अर बिंदी-पोडर दिलोलू
ब्वै बुबा कू आसिरवाद ल्यूल, उंका आंख्यू मा खुसीक आंसू देखी ओलू
राजी खुसी रोला द्वी चार पैसा बचोला, तब सब्यू ते मी परदेस घुमोलू
द्वी चार साल बाद बोडीक ओलू, कूड़ी पुंगडी दिखलू अपण घर बसोलू

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

रविवार, 26 जनवरी 2014

गंगा का छाला - खुदेंणी न रैई'



खुदेंणी न रैई' [गीत के बोल अंत में है ] - ये वीडियो एल्बम है उभरते गायक -   विनोद सिरोला जी के गाये गीतों की जिसमे उनका साथ दिया है अनुराधा निराला जी ने. इसमें गाये व् दर्शाए गीत सभी एक से बढ़कर एक है और मन में, कानो में तथा हृदय में एक जगह बनाते है. जैसे एक गीत है

'पूस' का मैना 'गाथ' ठंडेली, पालन हात्थि अलेली,
'मौ' की 'मकरैण' क्वी नी नह्येंदरू नौली-मंगरी खौलेली
फागूण मैना 'दानि' गल्वाड़यूं... रंग को लगालो

जाण वालों तुमारी न कवी चिट्ठी-पतरी न रन्त-रैबार 
यनु क्या गैनी के बौड़ी नि ऐनी यनु क्या पै के छुटिगे घार 
जाण वालों तुमारी न कवी........ 

इसमें एक टाइटल गीत है 'गंगा का छाला अर यूं चुयो का बीच ..' वैसे तो कई बार सुना व् देखा है लेकिन आज आपके साथ साँझा कर रहा हूँ कुछ विशेष कारणों से. वैसे इस गीत में एक कहानी है विदेश में रह रहे उस युवा की जो छुट्टी पर अपने गाँव जाता है. हर्शिल उसका गाँव है और दिल्ली से हर्शिल तक सफ़र वह  गाड़ी से तय करता है और अपने गढ़ देश को याद करता है उसकी सुन्दरता का बखान करता है और अंत में उसे गाँव पहुँच कर एक सत्य का सामना करना पड़ता है - पलायन. उसे दुःख होता है, सोचता है इस समस्या के बारे में और अंत में वह अपने गाँव में रुक जाता है.

मेरी पसंद के विशेष कारण है.

- पहला कारण विनोद सिरोला जी की आवाज, संगीत, उत्तराखंड के मनभावन दृश्य, तीर्थ स्थानों का जिक्र व्  दर्शन तथा इसके बोल जो मन को छूते है.

- दूसरा कारण इस गीत में जहाँ इसमें उत्तराखंड की सुन्दरता का व्याखान है वही पलायन की पीड़ा को भी समझा जा सकता है. पलायन -  वास्तव में अच्छी नौकरी व् अच्छी शिक्षा की खातिर अब भी युवा उत्तराखंड से बाहर जा रहे हैं. अगर यही हमें उत्तराखंड में मिल जाए तो इसमें कमी आ सकती है.

- तीसरा और मुख्य कारण है इसमें अभिनय. इसमें अभिनय किया है हमारे ही भाई  दीप नेगी जी ने, जो यू ए ई में रहते है लेकिन उनके तन मन में उत्तराखंड बसता है. उनका झुकाव पहले से ही कला, अभिनय और लेखन की ओर है.  उन्होंने समय समय पर इसको प्रमाणित भी किया है. हमारे साथ उत्तराखंड एशोसियेशन से जुड़े है और एशोसियेशन के सांस्कृतिक मंच में भी अहम् भूमिका निभाते है. अपनी पुस्तक 'सूर्य अस्त पहाड मस्त'  के द्वारा उन्होंने अपनी भाषा, ज्ञान और भावो का उदृत किया है. इस वीडियो में भी उनका अभिनय काबिले तारीफ़ है और उनकी इस प्रतिभा को और करीब से देखने सुनने को मिला. भुल्ला दीप और इस वीडियो में शामिल उनकी टीम के सभी सदस्यों के लिए  हमारी शुभकामनाएं !!


आप गायक विनोद सिरोला जी और अन्य कलाकारों के प्रोत्साहन देने हेतू ही नहीं बल्कि इस वीडियो के द्वारा जो सन्देश दिया गया है उसे समझने के लिए भी इस वीडियो को जरुर खरीदे, देखे और सुने

पेश है गीत गंगा का छाला के बोल व् वीडियो

गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच-२
कैन बसे या धरती-२
या धरती या गढवाल की,
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच-२
कैन बसे या धरती-२
या धरती गढवाल की,
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच-२

पंचबद्री,पंचकेदार,पंचप्रयाग यखी छ्न
पंचप्रयाग यखी छ्न
पंचबद्री,पंचकेदार,पंचप्रयाग यखी छ्न
पंचप्रयाग यखी छ्न
नंदा कु मैत यख अर शिवजी कु तपोवन,
देव्त्तों का थान छन-२
अर हिमंवंती देवियों कि डोली,
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच
कैन बसे या धरती-२
या धरती  गढवाल की,
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच-२
हो हो हो हो हो हो,
हो हो हो हो हो हो

कैन रोपि नि डाली-वोटी ,कैन पाथीनि डाडीं-कांठी
कैन पाथीनि डाडीं-कांठी,
कैन रोपि नि डाली-वोटी ,कैन पाथीनि डाडीं-कांठी
कैन पाथीनि डाडीं-कांठी,
श्वेत रंग मा कैन रंगी नि सबी सी ऊंची यु चूई चांठी,
कैका बोल्यान छ्न बगणी-२
ये गाढ गदना रोली बौली
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच-२
कैन बसे या धरती-२
या धरती गढवाल की,
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच-२

सीधा-सादा मनखी,सीधु -सादु घर संसार यख
सादु घर संसार यख
सीधा-सादा मनखी,सीधु -सादु घर संसार यख
सादु घर संसार यख
कोणी कंडाली खैक भी,मुखडियों मा मौल्यार यख
घणा बौण छ्न छांटा गौं-२
अर मन भौण्या यखका कि बोली
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच
कैन बसे या धरती-२
या धरती या गढवाल की,
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच-२

वैन बणाई लाख जतन कै,हमुन मोल नि जाणी जि,
हमुन मोल नि जाणी जि,
वैन बणाई लाख जतन कै,हमुन मोल नि जाणी जि,
हमुन मोल नि जाणी जि,
स्वर्ग सी स्वाणी धरती छुलैकि परदेश भलु माणी नि,
आवा कुछ दिन रैक ती दिखा-२
सुख सुविधों कि बेडी निखोली,
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच
कैन बसे या धरती-२
या धरती गढवाल की,
गंगा का छाला अर ह्यूं चुलो का बीच-४




- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)