शनिवार, 7 अगस्त 2010

द्याखोदी !

( जन्मपत्री मिलाने पर एक व्यंग, कविता के माध्यम से )


जजमानन पण्डाजी से बोली ..
पंडाजी , जर ई जल्म्पत्री मिल्या क्य ?
पंडाजील पत्री देखी , बोली ..
नौनी की कुंडलिम दूसरा स्थानम कांग्रेस
चौथम बी जे पी …….
अर सप्तमम काम्निस्ट बैट्या छंन !
एक हैका थै देख देखी
अपणी अपणी चाल चलना छन !
जजमान इका भाग्य थै दिखणा छन
आरजेडी अर समाज्बादी ,
ब्यो का बाद उन त , सब ठीक ठाक छ
पर डैर याकि चा ….
नाती नतणों हवाला नक्सलवादी !

सुधि सुधि ,मी , स्वीणा नि दिखावा !

बोडी,
अफ़ी अफुम छै बुनी ..
यखका सुचणा छना ..
कि, उन्दु जौला ......
अर तखुन्दा (प्रवासी ) सुचणा छन
कि उबू जौला .....!

मिन बोली , बोडी...,
तू क्या छै सुचणी ?

बोडिल ब्वाळ ...
ना यख वालों न रुकुनु ?
अर , ना ताल वालो ल आणु
गिचा बाबू .. क्या .... ???????
जू बुल्दन बुल्द जा
जू सुचणा छन , सुचुद जा ..

आणा छा, त आवा
जाणा छा , त जावा
पर सुधी सुधी , मी थै
स्वीणा त, नि दिखावा !

पराशर गौर
१८ मई २०१० रात १०२१ पर
कैनाडा

मंथन

होने दो हिने दो
आज विचरो का मंथन
विचारो से उत्पन होगी क्रांति
जग करेगा उसका अभिनन्दन !

सुना है की राजधानी
उंचा सुनती है
सता में बैठे लोग
अंधे,गूंगे, बहरे होते है
अब अंधे, गुंगो को ..
रहा दिखानी होगी
उनसे उनके ही राग में
उनसे बात करनी होगी
करना होगा दूर हमको
उनका वो गुंगा/अंधापन ... होने दो होने दो ..

भूखा - भूखा न सोयेगा अब
अधिकारों की बात करेगा
खोलेगा राज वो अब
पतित भ्रष्ट , भ्रष्टा चारो का
हटो ह्टो, दूर हटो,
ग्रहण करेगी जनता आज राज सिंघ्खासन ..... होने दो होने दो

हासिये पर हो तुम
जनता का रथ मत रोको
बदने दो उसको उसके लक्ष्य तक
मत उसको टोको
रोक न पावोगे प्रभाऊ उसका
गर बिगड़ गई वो
सांस लेना होगा तुमको दूभर
गर बिफर गई वो ...
भुलोमत , मतभूलो
की है जनता जनार्धन .... होने दो ...

आम पथों से राज पथ तक
बस एक ही होगा नारा
हक़ दो, हक़ दो ...हटो
है राज हमारा .......
एक ही स्वर में नभ गूंजेगा तब
स्वीकार नही है , भ्रष्टो का शाशन .. होने दो ...

पराशर गौर
६ मार्च २०१० सुबह ७.२७ पर

अवार्ड क्या हू न्द?

अवार्ड क्या हू न्द ?

वा बोली .
हेजी , यु अवार्ड क्या हू न्द ?
मिन बोली....,
लुखु समणी अपणु तमशु दिखै दिखै
जू ईजात , अर, बेजती हू न्द
वो अवार्ड हुन्द औरी कपाल हू न्द !

parashagaur

बुधवार, 4 अगस्त 2010

अछु ह्वै

मिन बोली पंडत जी ..
जरा ई जन्म पत्री दिखया
कनी दशा लगी होली जू इन ह्वै गे
अछु भलु पड्यु लिखू नोनू छो
मती मरेगी एकी जू , पुलिसम भर्ती ह्वै गे !

पंडित्ल बोली ...
हून त येल नेता छो , पर चला
अछु ह्वै जू पुलिसम चलिगे
अरे जजमान नेता से पुलिस भलो
वो त पाच साल tak रालू , पर युत
ता जिन्दगी भर घूस खालो !
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जी आपल सुणी ... बिचरी/रु .... ///

बोडी छेई छजजम बैठी ! आंदा जन्दरो थै , छेई पु छ णी .. " हे भाई लुखो ..! " . तैलया ख्वाल बची ब्वारी कु , क्या हवाई होलू ! जतका तै पूछी, सी बुना छा ! बुन क्या च बोडी , व त स्वील की पिडमा च बिचरी यैडाणी ! कनु म्वार वे बची कु ? जू जम्पत हुयुच ! .., दौड़ी दौड़ी माथि जाऊ . ! . पैलत , कै डाक्टर थै लादू ..! निथर, उ क्या ब्लुक्दन .. द, भाई कन कापली फूटी ... समणी वाली से बुन बैठी " बब़ा, क्या बुन, चुक्पट ह्वैगी मतिकू ! "
तबरी कैल बोली ..., बोडी..., तू बुन क्या च णी चै ?
बोडी बोली अरे बिटा .. " मी बुनू छो, की पिछला साल वे मुख्या मंत्रील जब बोली, की, मी, प्रसब व इमर्जन्सी का वास्ता १०८ गाडी लागाणु ! उ गाडियों थै क्यों फोन कैकी क्वी नि बुलाद्य बची.... परा आआआआआआआआ .. ??????????. !"
कैल बोली .. गे छो .. गे छो ! फोन भी करी छो! , पर, लैन ही नि मिलदी ! बोडी जब लैन ही नि मिलदी , त उथै कन कवाई पता चलालू की फलना गोमा, क्वी स्वीली च पीड माँ !
बोड़ी गुस्स्म फिगरेकी बोली .. " १०८ बान त उ, गिनीज बुक माँ अपणु नों, अपना बाई-बुबा अर दादों नो....., च , लिखाणु ! अरे उत मोरिगी तैरिगी ! पर जू अभी जन्म्यु नि विका बारमा कुछ ना ? अरे यु नेताओं थै कु समझा उ ...!
जू पैदा ह्वै की, ये राज्य मा वोट देणवलु ह्वालू, जू , युथै कुर्सियु पर बैठादिनी या बैठाला ! विका बारमा कुछ ना ..! अरे, जब वेल , १०८ गाडी लगैनी, त , वेथै पता नि छो कि, लैनेकि जरूरत भी उतके जरुरी च ज्त्क्गा की या गाडी ! आगरा बची ईई ..... ब्वारी थै, कुछ ह्वै जालू ना आआआआअ , त , मिन पट नारसिगम जैकी घात घन ! वे १०८ गाडियों का वास्ता अर लैनवालो का वास्ता ! अर जू , युथै दिख्ननीं सकदा .. , उका वास्ता .. !
जनि बोडी .. चुप ह्वै चै कि एक आदिम ताल बीती आई बुन बैठी .. " बोडी, बची कि नौनी ह्वैगी पर ब्वारी जड़ी रै ..! " बोदी थै काटो त खून ना !

परशार्गौर
२६ अप्रैल २०१० रात ८.५१ पर
द ब्वाला बल ....

एक कल्चर प्रोग्रामम में किसी ने , एक सज्जन का मुझ से परिचय कराते हुए कहा .. "पाराशर जी , ये भी आपके इलाक से है ..मिल , बड़ा गर्म जोशी से हाथ मिलै कि , बिना लंग लपोड़ कैकी सीधा , उसै अपणी माँ बोली , याने गड्वाली माँ पूछी .... " आप गडवाली छा "
उन बोली '_------- जी ... हा..., मै गड्वाली हूँ "
मिन बोली ... " क्या आप गड्वाली बोली लिंदा .."
उन बोली ... " मै समझ सकता हूँ लेकिन बोल नहीं पाता "
मिन बोली " किलै ?.."
उन बोली .. " कभी मौका ही नही मिला !"
मिन बोली ..."--- मिन बोली आप थै आपणा बुडा ददो नो याद छ ?
उबं बोली .. " ये क्या होता होता है ?"
उन बोली ..... अभी अभी त आपन बोली कि मै बींग तो सकता हूँ पर बोल नहीं सकता हूँ ? "
मिन समझाई . " बुडा कु मतलब बुडा दादा , याने को पीता ...का पिता !
उन बोली ....." ओ, ई सी ........ /// " शायद कोई.... , सिंह था ! पका पता नहीं ? "
मिन बोली .. " कवी चचा उचा ... उकु नो , त , याद होलू ?"
उन बोली ... " सबसे बड़े चाचा का नाम करामती सिह , सबसे छोटे का नाम गुमनाम और दो बीच वालो का नाम मुझे याद नहीं है ! "
मिन बोली .. .उ कु नो किलै नि याद ? "
उन बोली ..... " वो गौ में रहते है ना ....., इसिलए .."
मिन बोली ... " वो, ई सी.... पर क्या तुम कभी गौ न जांदा क्या ?"
उन बोली ... " गया था एक बार , जब मै छोटा था !"
मिन बोली ... " एक बार क्यों ?'
उन बोली .....'उसके बाद मुझे मोका ही नहीं मिला !"
मिन बोली " मिन सवाल कई कि आप पद्या लिख्या त ह्वैल्या ही ?
उन बोली ...... :' जी जी.. , पी यच डी इन हिस्ट्री ? "
मिन बोली .... " अकबरो ददो नो क्या छो ? '
उन झट से बोली ... " बाबर ..?"
मिन बोली _ " बाबरो बेटा कु ?
उन बोली ....... " हुमायु ..."
मिन बोली ...... " त आप थै युका दादो का नो याद छी पर अपण ना ! इन किलै ?
उन बोली ...... " दादा का नाम बहुत है क्या करना है उन्हें याद करके ? कौन से उन्होंने हमें रोटी देनी है ! इनको याद करके सरकार हमें इनाम देती है ! रोजगार देती है !

मिन बोली ... " आप के गडवाल का छा ?" टेहरी, पोड़ी चमोली ....
उन बोली .... " माफ़ करे .. मै मुबई से हूँ ? जहा एक ही नारा है आम छे मुबई ....///

पराशर गौर
मई ९ २०१० रात १०३९ पर
दयब्तौ की खोज !

बोड़ी चौकम छे बैठी ! आंदा जान्दो दगड छे बच्याणी , कि तैबेरी , मेल्या खोलै रामचन्देरी वाख्म एकी बोड़ी से छुई लगाद लगाद पूछंण बैठी
"... हे जी , तुमल भी सुणी ? "
बोड़ी बोली .. "--- क्या ?"
".. ह्या , बुने, क्वाठा भीतर का वो जेवोर , जौकु नौ .... कने लियु उकु नौ " ! बिन्गैकी की बुलद "------ जौक नौ, स्युजू तुमरा देलम बैठुच ! "
बोड़ील वे जाने देखी आर बोली .. " वो कुता सिंह ..! ."
"हांजी, हां ...! " वी--- वी .... "
वीजने घूरी की बोड़ी बोली " ----- कनु क्या ह्वे कुता सिंह थै ? "
" -----सुणम.. आई कि, उकु नाती घोर च बल औणु , अपना दादा प्रददौ कि कुड़ी थै दिखनो अर अपणा नार्सिंग देब्तो कि पुजाई कनु ? "
"---हाँ --- हाँ !" ददल ,त, नि खोजी आज तक अपणी गौंकु बाटु, अपणी पुगाड़ी - पटुली ! ताखुँदै राई ता जिन्दगी भर ! बोई बाटु हेरी २ मोरीगे ! कुड़ी धुर्पाली उजड़ी गीनी !
न उ आयु अर ना नौनी ! द्वी पड़ी तक कैल भी याख्की शुद्ध नि ले ! बोड़ील , सांस लेकी अर वेकि कुड़ी जाने हेरी बोली .... " ब्वारी .. मित बुनू छो कि, यु नर्सिंग इनी ताखुन्दा बस्या लुखो थै भी नाचे नाचे घोर बुलादु ना त कनु छायू ! पैल, ये सबी नौकरी खुज्यणु तखुन्द गिनी ! अर, अब , वो सबी ..., ये जनि अपणा अपणा दय्बतो थै खुज्यानु घोर ऐ जांदा ना..., त , हे पणमेस्वरा .. मी भी त्वेमा सबा रुपया चढाई ध्युलू !
पराशर गौर
दिनाक ४ अगस्त २०१० स्याम ६ ५३ पर