शनिवार, 18 मई 2013

म्यार आखर - मेर कबिता



बिना आखरो कु रीतू छौं
लिखणू रेंदू
सब्द बणना रंदीन
उमाल आणू रेंद
पन्ना गिल्लू करणू रेंदू

म्यार लिख्याँ आखर
सब्द बनी की
के कुण कबिता छन
त के कुण लेख छन
के कुण ठट्टा छन
के कुण आखर छन
आप ते जन लगल
बींग लेन ...... म्यार लिख्याँ आखर

म्यार लिख्याँ आखर
सब्द बनी की
अंखर - पंखर ते कुम्लांद छन
जिकुड़ी ते लीपी जन्दीन
मेर मनसा बींग सक्लया
बींग लेन ... म्यार लिख्याँ आखर

म्यार लिख्याँ आखर
सब्द बनी की
डांडी कांठीयूँ ते ज्युन्द केर जन्दीन
गाड गदनयो कु छुन्छयाट सुने जन्दीन
हाड़ भी छक्के की धे लगादीन
सूण सकल्या त सुणी लेन
बींग लेन ...... म्यार लिख्याँ आखर

म्यार आखरो मा
बोण क डाला कभी रुंद छन
त कभी गद बद मा रंदीन
म्यार आखरो मा
ब्वै की खुच्यली च
त कैबर बाबा की फटकार च
सूण सकल्या त सुणी लेन
बींग लेन ...... म्यार लिख्याँ आखर

म्यार आखरों मा
बाटा रैबार लिजन्दीन
संस्कार अर संस्कृति
बोडी क आंदीन
म्यार आखरों मा
डाला बूटा मोल्यार लंदिन
फुयोंली अर बुरांश खिगताट करदिन
कुलै अर कुएड़ी अपणी खैरी लगादिन

म्यार आखरों मा
रं रैबार च
जिंदगी की खुल्दी गेड़ च
म्यार आखर
सेवा सौंली भिजदीन
सूण सकल्या त सुणी लेन
बींग लेन ...... म्यार लिख्याँ आखर

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
[काव्य एवं सांस्कृतिक सम्मेलन, दुबई, यू ए ई मे प्रस्तुत कविता ]

(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)