शनिवार, 24 अप्रैल 2010

आवा बौडी


आवा बौडी
आवा बौडी आवा बौडी
अपणो तै ना जावा छोडी
यखुली छाजा मा बैठी छ बोडी
बोडा लेण छ लखडा तोडी
धै लगाणा छ्न बाजा कुडी
मेरा अपणो आवा बौडी

मै अभागी ईन भी रायी
ब्यो करि तै ल्यायी ब्वारी
पहली हि महिना चली गेय दिल्ली
बुढि-बुढिया हम रै गें यखुली
बुढि-बुढियों तै जावा ना छोडी
मेरा अपणो आवा बौडी

दादा मनु छ हुक्का कि सोडी
पर आन्खियों मा नाति कि मुखडी
सालो हवेगेन नाती नी बौडी
सभी चली गेन हम तै छोडी
मेरा अपणो आवा बौडी
हमतै ना जावा छोडी

दादी की ता झुरी गे जिकुडी
लडिक ब्वारियों का बाठा देखी
गोर गुठ्यार भैसियों कि तान्दी
आज देखा सब पुडियां छ्न बाझी
आवा बौडी आवा बौडी
अपणो तै ना जावा छोडी

लेखक:- विनोद जॆठुडी (vsjethuri@gmail.com)

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

जनम भूमि


(स्वर्गीय श्री कन्हयैलाल डंडरियाल जी की कविता"जनम भूमि" ऊंकी कविता संग्रह "कुयेडि" बटि)

मेरी मौत मीथै लिहज़ाणो ल्हिजे लै,
पर डाँडि काँठयू अपणि द्दखणि देंदी। 

जई भूमि मा मिल मनखि जन्मा पाया,
जखा स्वातो को मिल मिठो पाणि प्याया,
नि उपकार वख को मि कुछ कैरि  सैको,
मिथै भूमि से वी क्षमा मगणि देंदी।

जखौ बाडि खैकि मिला पुटुग पाळा,
जखा माट्s मा मिल कथा खेल ख्याला
जऊँ डांडयू का मिल मिठा फल चखीना,
अपणि डाँडियों से विदा मगणि देंदी।

जऊँ डांडियो से मी बडो प्रेम छायो,
जखा गाड गदनों लगदि खुद छै भारी,
तुमू से सदनि कू अलग हूणो छौ मीं,
मिथै खोळू मा ऊँ इतग ब्वलणि देंदी।

उऊँ डांडियो मा मेरे याद कैकी,
गुज़र करणि ह्वैली मेरा सार रैकी,
तेरो-मेरु इतगै दगडु छायु दगड्या,
सिरफ वीमं जैकी इतग ब्वलणि देंदी।

मिला बाटु अपणो सरया काटि याला,
मेरा खुट न जाणी कतग काँडा बैठा,
मेरा पैंथरा भी अभी कतगै आला,
मिथै ऊकुँ रस्ता सफा करणि देंदी।

मिथै कांडाँ बाटा सभी टिपणि दैदी,
म्यरी आखिरी छूवी सभी सूणी ल्हेदी,
मेरी मौत मीथै ल्हिणाणौ  ल्हिजे लै,
परा डांडी - काठयूँ अपणि द्दखणि देंदी।

मेरी मौत मीथै लिहज़ाणो ल्हिजे लै,
पर डाँडि काँठयू अपणि द्दखणि देंदी। 


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)