बुधवार, 9 दिसंबर 2020

मेर वा



रम झुम

छम छम

मेर वा

आंदी च

घम घम

चम चम

करदी च

रक रक

सक सक

 

मी बुल्दु

थम थम

ये मेरी

हंसदी बुरास

नी हेंस

मुल मुल

जिकुड़ी हिल्दी

झम झम

सुण मेरी

सुख्यूं पराण

द्वी घड़ी

माया लगोला

 

वा बुल्दी

कभी त

केरा सरम

म्यारा स्वामी

केरा करम

तुमर दगड़

फुटिन करम

तुमरी सौं

सदनी की

झक झक

करदा छौ

बक बक 

फुंड फूंका

अपरी छूईं

-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ०९\१२\२०२०








(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

शनिवार, 21 नवंबर 2020

लिखण कुण तैयार छौं





देबी दिबतौ की खूब पूजे करी 
डांडा काण्ठियू ते खूब ल्याख
ब्यो बरती कू खूब स्वांग रची  
खुदेड़ गीतों मा खूब रूले 
रास रस्याण की अर खाणे पीणे की
की खूब घपरौल मचे
अब मीन कुछ और लिखण
ज्यू बुलणु कुछ और लिखण कू 
पर सुचणु छौं 
क्या लेखू, क्या नी लेखू 
इने उने की कथुक लिखण
तुम्हीं बताओ दी क्या लिखण
सच लिखण कि झूठ लिखण
त्वेते लिखलू त सच ही लिखलू
अफु ते लिखुल त झूठ लिखलू 
या ही त सच्चे छ अचकाल 

सच दुसरों की ही भलु लग्दु 
अपर झूठ त सदेनी लिख्द आणू छौं 
सच दुसरों कु ही लिखे जांद
बुरे त दुसरों की ही दिखेंदी 
अर टंगड़ खिंचण मा 
हम गढ़वलियूं कु 
क्वी मुक़ाबला भी त नी च
खुद ते हम, सच्चे कु पुतला समझदौ
अंगुली उठाण मा भी त आनंद आन्दु
अफु ते वाह-वाही 
अर दुसर ते सर्मन्दगी मिलद
अर हाँ इन लिखण का बाद ही त 
जीत कू अहसास हून्द 
एवरेस्ट पर जन झण्डा फहराण सी 
अर मुखड़ी पर रंगत बकी बाते की 
चलो यू ही सब
एक बार मी लिखण कुण तैयार छौं  
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल



(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

मंगलवार, 10 नवंबर 2020

बुलदु बल ....



बुलदु 
गॉगल्स चढ़े की बौलां बीटे की
अपणी साने की रंगत मा र्ंग्यू
अदक्ची गढ़वेली बचे की
हिंदी अँग्रेजी रीमिक्स करी की
ने पीढ़ी को प्रतिनिधित्व करदू
चक्ड़ैत छ्वारादेसीस्टाइल मा
ने जमानों कू स्वींसांट मा 
बिंगदू भी च अर बुलदु भी च ....
 
बुलदु बल
गोर चराण मा अब सान कहाँ है
खेती बाड़ी मा इख क्या धरयू है
बाड़ी फाणू झुंगर गिचुंद नही जाता है
फास्ट फूड कॉन्टिनेन्टल छ्के की खाता हूँ
टुटी सड़क सुख्या गाड़ा गदोना मा
यीं खरडी पुंगड़ी डांडा मे क्या रखा है
गौं बजारे की अदकची अब चढ़ती नहीं
स्कॉच देसी बियर मा खूब रंगत आती है
 
बुलदु बल
अब गोर बखर नहीं चराना पड़ता है
दूध घी समणी झट से मिल जाता है
पल्यों झुली दाल भात सपोड़ेंन्द नी च
पंजाबी कड़ी दाल मखनी शौक से खांदू
फजल मा रूटी भुज्जी अब नी खयेन्द
ब्रेड टोस्ट बर्गर से ब्रेकफ़ास्ट मी करदू
घौर की साग सगौड़ी मे अब क्या रखा है
कीसे मे नोट जू चेणु वो झट आ जाता है
 
बुल्दू बल
हाँ कभी मुझे घेर गाँव की खुद लग जाती है
गढ़वाली गाणो सुन कर खैरी अपनी भगाता हूँ
ब्यो बरात मा गाणो ढ्स्का लगाण ज्यू बोलता
पर क्या बोल गौं जाणे का दिल नहीं बोलता
कबी सुच्दू भी छौं किले पहाड़ से भेर आया
फिर द्वी पैसा देखि की मन ललचा जाता है
कबी मन करता है काखड़ी अर आम चुराने का
चूना की रूटी अरसा अर स्वाल पकोड़े खाने का  
 
बुलदु बल
देस बिदेस मा उत्तरखंडी पलायन पलायन बोलता
खुद बणी गे परिवार बणे कीहमको उंद धकेलता 
आफू कुण सबै करदीन औरों कुण केरा त जाणा
राज्य/लोगो की क्वी नी सुच्दू सब अपणी चांदा
हमनू अपरु स्वाच त सब धे छ्न हमते लगाणा
बौड़ी आवा बल पलायन रोकागौं ते अपर बचावा
शिक्षा नौकरी क कुछ कारात हम बी बौड़ी औला
तेरी सौं गढ़वाले अर राज्य की सेवा कुछ करला 
 
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल१० नवंबर २०२०



(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

अरसा कुण नी तरसा




हिंदी कू अरसा मतलब हूंद टेम च
गढ़वली अरसा मतलब हूंद क्ल्यो च 
देवभूमि क यू एक प्रसिद मिस्ठान च
ब्यो बरतियू मा यू हमरू सम्मान च 
उन बुल्दिन अरसा कर्नाटक बटी अयूँ च
छ्याई अरसालु हमर इख अरसा बण्यू च 
उत्तराखंड मा बरस्यू बटी खूब छयूँ च 
देवभूमि मा अरसा शंकरचार्य क ल्यूँ च 

याद कराणू छौ तुम भी अरसा बणे ल्यावा
चोलों ते राती कुण भीगे की धेरी द्यावा 
उरख्याली मा कूटो या तुम पीसी ल्यावा 
गुड़ चूरी क या ताक बणे सौंफ मिले ल्यावा
ज़रा पाणी, घ्यू मिले की लोई बणे द्यावा
तिल डाली की  अरसों ते न्ये रूप द्यावा 
सरोंसू तेल मा तली की अरसा बणे ल्यावा
गरम खावा चाहे मेना भर कू धेरी द्यावा 

देवभूमि का खाणों मा मिलदी च खूब रस्याण 
अरसों क क्या बुलण अर तुमते अब क्या सुणान
रिंगाsले क बणी हथकंडी च सुबकामो क पछाण 
मालू अर तिमला क पतो मा अरसों कू सम्मूण
मीठे दुनिया भरे की पर अरसा कू स्वाद बेजोड़
भे बंदो कू परेम अर सुसरास मा नी यांक तोड़ 
स्वालों पकोड़ो दगड़ी अरसा बणी हमरी पेछाण
नी बिसरी जेन हमरी संस्कृति अर हमरी पछाण

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, ०५/११/२०२०






(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

ठुंगार






आज सूबेर सूबेर
हेर मरच
कमर मटकेकन
म्यार तरफ दिखण बैठ
लगणी त छे
बिगरेली बांद जन
अर मुल मुल हेंसणी भी छे
हंसदा हंसदा
जन बुल्णी होली
पहाड़ ते बिसर ग्यों तुम
मीतेई नी बिसर ह्वेला
हर खाणा कू स्वाद
मेर ठुंगार
लिया बिन
कन मा बिसर सकद्वा तुम

सिलबट्टा मा खड़ा लूण
धनिया अर लेसुण दगड़
पिसी की त मेर माया
उतराखंडी क जीभ हे बतेली
कखड़ी आम अमरूद
चोरsक खई त होली
कखी न कखी
मेरो स्वाद
मेर याद
तुमों मा सम्मूण जन होली

अरे सूणा
जख भी ह्वेला तुम
रुटी भुझी खावा
दाल भात खावा
फाणू भात खावा
झुल्ली भात खावा
चेस्वणी भात खावा
उत्तराखंडी खाणा
बिसरेन न
अर मेर ठुंगार दगड़
स्वाद तुम ल्यावा

बस हेर मरच दगड़
जरा सी संवाद
झट तोड़ी क लयों,
दाल भात अर भुजी
क दगड़ लेकन ठुंगार
गीच मा मेरे आईगे स्वाद
उल्यारु ज्यू
सगोड़ा अर गौं का
सुपीन दिखण बैठ ग्याई

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३ नवंबर २०२०


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)