गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

खुद मा


जब तीन सोची
मीन भी सोची
पराल लगी
भुक्कि पै
खुद मा तेरी

डाडां डाडां
घुमणु रौं मी
कांडा बैठि
खुटियो मा मेरी
खुद मा तुमरी

चिठ्ठी लेखि
आंखो मा ऎगे पाणी
रुझि गै कागज़
अब क्या लेखु
खुद मा तेरी

जुन्यालि रात
एखुली छौ
तारो क दगडी
केरी बस तेरी बात 
खुद मा तुमरी

तेरी फोटु
कभी पुरेणी सी
कभी नैई सी लगदी
पर बात मी रोज करदू
खुद मा तेरी

रुटि जेल जांद
आग बुझि जांद
शीसा नि दिखदू
रस्ता रोज़ मी दिखदू
खुद मा तुमरी

इनै विनै
दिखणू रैंद
जख जख त्वै दगड़ी
याद छन बसी मेरी
खुद मा तेरी


प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, अबु धाबी



(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)