गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

सुधि सुधि ,मी , स्वीणा नि दिखावा !

बोडी,
अफ़ी अफुम छै बुनी ..
यखका सुचणा छना ..
कि, उन्दु जौला ......
अर तखुन्दा (प्रवासी ) सुचणा छन
कि उबू जौला .....!

मिन बोली , बोडी...,
तू क्या छै सुचणी ?

बोडिल ब्वाळ ...
ना यख वालों न रुकुनु ?
अर , ना ताल वालो ल आणु
गिचा बाबू .. क्या .... ???????
जू बुल्दन बुल्द जा
जू सुचणा छन , सुचुद जा ..

आणा छा, त आवा
जाणा छा , त जावा
पर सुधी सुधी , मी थै
स्वीणा त, नि दिखावा !

पराशर गौर
१८ मई २०१० रात १०२१ पर
कैनाडा

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

भांची

दि उ .....
फुंडू फुका यार ...
कैकी छा छुई लगाणा !

इत्कै गाल गाल अ ईच नौनी
त,
गंगाजिम डाल दया
वीथै भी अर तुम थै भी मुक्ति मिली जाली
क्या समझ्य !?
नि बिंगा ??
खत्यु च खत्यु !

पराशर गौर
मई १४ स्याम ५ १७ पर २०१०

बदोबस्त / एक MAZZAK

मिन बोली समधण जी ..
यखी रै जावा ?
समधण बोली ..
रैनू त रै जादू पर ,
तुम्हारा समधी क्या ब्वाल्ला ,जर समझाया !
मिन बोली ..,
वांकी तुम फ़िक्र न कारा
समधी खुणि मी बोली द्युलू
भै , मयारू बदोबस्त ह्वैगी ...
तुम अपणु कैलीया !

पराशर गौर
मी २० मई २०१० दिन्म २. बजी !

बादी

एकल मी थै पूछी...
साब आप आसा बादी छा
या निराशाबादी ....!
मिन बोली ...
कैकी आशा, अर कैकी निराशाबादी
कनु सवाल छे तू कनु ?
अरे , भुला, मित ....,
"बादिल " ( गैस ) छो मुनु

द ब्वाला !

( चुनाऊ जितने के बाद )

द ब्वाला !

कांग्रेश बोनी च ... कोच स्यु ?
बीजेपी बोनी च .. कोच भाई यु ?
यूकेडी.. बोनी च .. कोच उ ?

मिन बोली . मी, नि पच्याण छा
मी मतदाता छो , मतदाता
तुम स्ब्यु थै क्या ह्वेगे ?
वो तिन्युं बोली .. वो अछा अच्हा..
ह्या यु , ५ सालम .....,
बहुत कुछ बदिलिगे !

पराशर गौर मई २१ /10

द्याखोदी !

जजमानन पण्डाजी से बोली ..
पंडाजी , जर ई जल्म्पत्री मिल्या क्य ?
पंडाजील पत्री देखी , बोली ..
नौनी की कुंडलिम दूसरा स्थानम कांग्रेस
चौथम बी जे पी …….
अर सप्तमम काम्निस्ट बैट्या छंन !
एक हैका थै देख देखी
अपणी अपणी चाल चलना छन !

जजमान इका भाग्य थै दिखणा छन
आरजेडी अर समाज्बादी ,
ब्यो का बाद उन त , सब ठीक ठाक छ
पर डैर याकि चा ….
नाती नतणों हवाला नक्सलवादी !

"कुदरतो कहर "

"कुदरतो कहर "

ये बसगाल
येसु बसगाल
भैर /भित्तर , छन्यूमा
पाणी ही पाणी !

जै देखि ,
डनडयली / वबरी हिलिनी
ग़ोउर- ब छु रु कांपा ...
धुर्पल्युमा थर्पियु दयबता डैरी !

कूडी चुइनी / फटली चुइनि
उणी चुइनी / कुणी चुइनी
धुर्पली चुइनी ......
इन चुइनी की, जों देखि
आंखियु का आंसू भी कम पड़गी !

पराशर गौर
सितम्बर २२ . २०१० सुबह १०. ३० बजे

द ब्वाला , पतै नि !

द ब्वाला पतै नि !


रुडियु कु घाम
सौंण/भादौ की बस्गाल
पूस /मौ की ठंड
चैत /बैसाखे मौलार
दीदा ....उत ..,
म्यार गौमै ही रैगी !

यखत, न पाणी
न ठंड, न बरखा , न घाम
यखत बस काम ही काम !

यखत,
रात दिनों पते ही नि
कबरी रूडी गे , कबरी सौण
कबगे -पूस /मौ
गे कबरी चैत /बैसाख प्तै नि !

यखत पता च बस ,
कब दींण क्वाटरो किराया
राशन पाणिकु बिल
यु बिल ,वो बिल अर स्यु बिल
कब बितिगे इनमा उम्र पतै नि !

पराशर गौर
दिनाक २९ जनबरी २०११ समय १.४६ दिन्म

अज्यु भी

कर्ज गाड़ गाडी
पुंगडी बेच - बेची
पोर वीं घडयाला धनी
कति, खाडु-बुगट्या मनी
फिर भी जन्या तनी !
मिन बोली ..,
कुछ फैदा हुण भी चकि, सुधि इनी
वा बोली ....
कुछ ना ..., अज्यु भी उनी , जन्या तनी !
मिन सवाल कै..
अग्वाडीकु कवी कार्यक्रम , या ह्वेगी
वो बोली ..
भैजी, बस छाया अर छादु पूजन रैगी !
मिन बोली -पूजा पूजा
तू त की हवेली ठीक पर हाँ
पूज्यरियुंकि पो- बहार , अर मजा एगी !

पराशर गौर
दिनाक २९ जनबरी २०११ समय १०.३४ पर

वापसी !

बर्षो का बाद ,आज ....
लौटियु मी अपणा मुल्क
सब बन्धनों थै तोडी
सब सरहदों थै लांघी , छोड़ी
ज्युदु ना ........
बल्कि बणीकि राख
माटै कि क्मोलिम !

jab तक ज़िंदा ऱौ
सदान मयारू पहाड़ --------
एक तस्बीर बणी रा
म्यारा मन मा !

जै थै मी , देखीत सकुदु छो
महशुस भी कैरी सकदु छो
पर झणी किलै.........
वख वापस लौटण पर
मेरी मज़बूरी मी थै कैकी मजबूर
मी पर खुटली लगै दीदी छै !

हरिद्वारम,
जनी म्यारा अपणोन
माटे कम्वालीकु मुख खोली
म्यारू रंगुण बोली .....
आजाद ह्वेग्यु आज मी
वी घुट्ली से
एकी अपणी धरती म़ा !

व धरती -----------
जै कि माटिम मिल
लदवडि लस्कै लस्कै
लिस्ग्वारा लगैनी
जै कि म्याल्म मिन
घुटनों क बल चल चली
गुवाय लगैनी ------
जैमा कभी कभी
थाह थाह लींद लींद पतडम पोडू
डंडयालम !

जख ......
ब्वै की खुच्लिम सियु
बे-फिकरी से
भैजी क कन्दोमा चैड्यु
दीदी का हतोमा ह्वली खेली
ददी की ऊँगली पकड़ी च्ल्यु
बाबाजी क खुट्युमाँ धुध भाती खेली

जख ------------
गोरु पांति चरैनी
लुखुकी सग्व्डीयुमा
ककड़ी - मुंगरी चुरैनी
रोज लुखुका औलाणा सुणी !
दख सिर्फ ये बातो च
डंडी कंठी , घाड गदेरा
तमाशा . म्यला ख्याला
सब उनी राला , उनी हवाला
पर मी नि रोलु ....!

जनी मेरी राख
किमोली बीटी भैर आई
और हवा से मिली
उन्मत /स्वछन्द ह्वोकी व
बथो का दगड उडी
एक अंतहीन दिशा की तरफ !

parashar gaur
२१ जनबरी २०१० सुबह १..१३ पर