शनिवार, 8 दिसंबर 2012

ब्योला गधम ....

( ये कबिता मेरी और स्वर्गीय डंडरियाल जी के बीच की थी संन 1974 के बात है हम किसी शादी में थे मैंने उनसे एक सवाल किया था )
घोड़ीम चडदै ब्योला डंडरियाल जी मिन ब्वाला हो जी गुरूजी ज़रा इनै आवदी दिलम च एक शंका अईकी जरा वी मिटावादी !
उन बोली "हाँ " बवालों बवालों क्या च सवाल ख्वालो ?
मयारू सवाल सूणा हो घ्वाड्म किलै चड्द सजधजी ब्योला गधम क्यों नि बैठद !
उन बोली ---- हाँ बुना त तुम ठीक छा अर हुण भी एनी चैन्द एक काम कैद्वा अगल्य साल तुम्हारा नौनो ब्यो च आप ही रीती थै बदल द्यावा एक गधा थै हनका गधम बैठे दयवा !
 -------- पाराशर गौर


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली) एक गड्वाली हास्य कविता रीत बदला ! 

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

मैं किलै जाऊँ पहाड़


(इस रचना मे गाँव के लोगो की आस व आज के नौजवानो का जबाब )


उतराखंड का दाना - सयाणा
बस रंदीन दिन रात बरड़ड़ाणा
नौना - नौनियूं तुम बौड़ी आवा
उत्तराखण्डे की संस्कृति ते पछाणा
कूड़ी - बाड़ी ते अपणी देखि ल्यावा
बची च लस अबी, हमते देखी जावा
बाद मा याद केरी की फिर पछ्तेला
जलम भूमि कु करज कन मा चुके ला
आ जावा अपणा पहाड़...

अरे बाडा, अरे दद्दा, किले छाँ बुलाणा
किले छाँ अपणी तुम जिकुड़ी जलाणा
आज तलक हम ते क्या दे ये पहाड़ा न
न शिक्षा न नौकरी, बौड़ी की क्या कन
मैं किलै जाऊँ पहाड़ .....

हिन्दी आप लोग बिंगी नी सकदा,
अँग्रेजी हमर दगड़ बोली न सकदा
भैर जै की हमुन हिन्दी अँग्रेजी सीखी
गढ़वली - कुमौनी ते कीसा उंद धैरी
मैं किलै जाऊँ पहाड़ .....

गढ़वली - कुमौनी मी अब नी बुल्दू
समझ मी जांद पर बोली की सक्दू
छन कथगा जु बुलदिन अपणी भासा
पर पछाण हमरी हिन्दी अंगरेजी भासा
मैं किलै जाऊँ पहाड़ .....

उकाल गौं की अब मी नी चेढ़ सकदू
बाड़ी झुंगरु कंडली अब मी ने खे सकदू
झुकी की खुटा मी केकु नी छ्वै सकदू
बिना दाँतो की बात अब नी बींगी सकदू
मैं किलै जाऊँ पहाड़ .....

मी कखी छौं गढ़वली, कखी छौं कुमौनी
किलेकि उख ह्वे जांदी थ्वाड़ा खाणी पीणी
इनै - उनै केबर मी उत्तराखंडी बण जान्दू
उत्तराखण्डे की बात पर पिछने सरकी जान्दू
मैं किलै जाऊँ पहाड़ .....

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 




(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

म्यार उत्तराखंड




जागी जागी की उत्तराखंड बणेई
मौका आई त मी सियूं रे ग्यों

देव भूमि ते हमन अपणों जाणी
सेवा करला, या कसम हमन खाई
जागी जागी की उत्तराखंड बणेई
मौका आई त मी सियूं रे ग्यों

तब नौ की नी केरी केन परवाह
उत्तराखंड बणी जावा बस या छे चाह
जागी जागी की उत्तराखंड बणेई
मौका आई त मी सियूं रे ग्यों

केन जवानी देई, केन भाई, केन दगड्या ख्वेई
केकु सुहाग उजड़ी अर केकी खुखली सूनी ह्वाई
जागी जागी की उत्तराखंड बणेई
मौका आई त मी सियूं रे ग्यों

उत्तराखंड बणे की मी बिसरी ग्यों
बस नेतागिरी मा मी उल्झुयूं रे ग्यों
जागी जागी की उत्तराखंड बणेई
मौका आई त मी सियूं रे ग्यों

देहरादून मा ठाठ छन, गेरीसेण भूली ग्यों
अपणी जेब सब्यूं भोरी, पहाड़ा की केन नी सोची
जागी जागी की उत्तराखंड बणेई
मौका आई त मी सियूं रे ग्यों

गौं बटी मी भागी, अपणी भासा बी छोड़ी
उत्तराखंडी नामा कु, कूड़ी बाड़ी सबी छोड़ी
जागी जागी की उत्तराखंड बणेई
मौका आई त मी सियूं रे ग्यों

आज सबी उखक सरबे सरबा छन बणया
जु च स्वारु भारू, वे क त भाग छन चमकया
जागी जागी की उत्तराखंड बणेई
मौका आई त मी सियूं रे ग्यों

चला चला रे उत्तराखंडियों अब सियां नी रावा
उठी जावा, सुपीन मा न असली उत्तराखंड बणावा
गढ़वली कुमौनी न बणा, उत्तराखंडी तुम बणी जावा
स्वाचो न, बस अब कारा, उत्तराखंड ते आज बचावा

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

शनिवार, 14 जुलाई 2012

कुहेड़ी



1.
"सर्रर सर्रर
कुहेड़ी
ऐन सौण-भादो की
फर्रर फर्रर
बथौन
सब उड़ै गै,

जौँ क
मन मा लगी
बारामासी कुहेड़ी
कु बथौ आलु
उड़ै लिजालु सदैनी।"

2.
"आ कुहेड़ी
लुकै दे
पिरथी सैरी,
कुनजरीयोँक नजर से
कुछ देर त बची रैली।"

3.
"कुहेड़ी
जब चलदी
सैड़्यी रैँद धरती
मन मा
लगी कुहेड़ी
हमेश जिकुड़ी जलांदी
हमेश मनखी तपाँन्दी।"

महेन्द्र सिँह राणा 'आजाद'
© सर्वाधिकार सुरक्षित


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

शनिवार, 23 जून 2012

क्रिमुलोँ सी धार !

"क्रिमुलोँ सी धार
बगणी छन उन्धार
क्वी बिँग्लु सार
क्वी बतालु बिचार
सुँग-सुँगऽसुँग-सुँगऽ
ऐका का पिछ्याड़ी द्वी
द्वीकोँ का पिछ्याड़ी...
अब क्या ब्वन
क्रिमुला भी जान्दा
बौड़ी कै त आन्दा
अपणा पुथलोँ तेँ
दुध-बाड़ी ल्यान्दा
य त क्रिमुलोँ से
परे ह्वै गै
बान्दरोँ सी ठटा ल्गै कै
अपणा काखी पै चिपकै कै
गरुड़ जनी उडै गै
जरा वैँ कु भी त स्वाचौँ
जौन काखी पै चिपकै कै
दूधैक धार गिचा पै लगै कै
अपणा खुच्ली मा सैवायी
जरा स्वाच...
जख तू रलौ
वखी बरकत रैली!" 

महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद
© सर्वाधिकार सुरक्षित 
23/06/2012

(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

सोमवार, 18 जून 2012

उड़ जै रे पंछी तू


उड़ जै रे पंछी तू
जै के इति दूर,
पंख लगे के जाई तू
जाई तू फ़ूर-फूर...
         
मुख मा त्यारा एक तिरण
जन लगदी सौ किरणों की घाम,
त्यारा इन तिरणों से ही हवायी
ये संसार का सारे धाम।

उड़ जै रे पंछी तू ...

त्यारा इन तिरणों को यू घ्वोल
जन लगदी कटोरी सुनै की,
त्यारा इन घ्वोलों से ही
सीख ल्यही ब्रह्मैं की।

उड़ जै रे पंछी तू ...

त्यारा घ्वोलों मा यूं प्वोथील
ज़्वु लगड़ा द्येव स्वरूप,
त्यारा इन प्वोठीलों से ही
बन्यू मन्ख्यैं कौ रूप॥
 महेन्द्र सिंह राणा आजाद
© सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनाँक -   ०५/०२/२००६


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

सोमवार, 23 जनवरी 2012

गिंदी ....


गिंदी ....
गिंदी छौ बगते की
खूब हव्वा भरी चा
लमडणु छौं खुट्टों का बीच
पतड़े गयों कथगा बगत
केबरि ये फाल
केबरि वे फाल
कथको न पकड़ी
कथको न छ्वाड़ी
लुखों न फ़ौल भी केरि
लुखों न थ्रो भी केरि
जै कु जन मन आयी
तन सब्यून केरि
क्वी जीती क्वी हारी 
केनि खुसी अर केनि मनै गम

पर मी
न जीती न हारी
अर मी
रोज तैयार हवे जांद
नै मैच खिलण कु
जिंदगी कु मैदान मा
या फिर
बगत कु खिलाण मा

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)