गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

सुचदु रे ग्यों ...


सुचदु रे ग्यों ...

गौ की खुद लगी
बौण धे लगाण बेंठी
सुपिन फिर कुछ इन हवाई

सुचण बैठी कथका बरसो बाद
जल्मभूमी कू अब दर्शन ह्वाला
गौ मा कू हवालों, कू मिललू
कू पछाणsल, कू भेंटुलू
कुजsणी कू मुख मोड़ी जाsलू
कैकी आंखियू मा पाणी आलू

सुपिना मा
झुल्ला झुल्ली थैला मा धारी
रट पट पैटी गयो मन छो भारी
लग ग्यों बाटू
बाज़ार पोंछी त खुज्दू रेग्यो
अपणु कवी नी दिख्ये
नौंनबाला दानु सयाणु
जू दिखेंsनी
सब्यू की आंख्यू मा
सवाल छाई दिखेणू
कु ह्वालो, कु छे रे देशी
रस्ता भूली कि अपणु छे क्वी

बिना कुछ बुल्याँ रस्ता लगी
जणयूं पछन्यु बाटा
मुल मुल हंसण बैंठी
भिटेण लगीन डाला बूटा
बिसरी ग्यु थकान
बैठी ग्यो उंका दगड छ्वीं लगाण
आंदा जांदा मनखी क्वी नी रुकी
बस खित खित हैंसी चिढ़ाणा रेन

नै मकान गौ का
पुरणी कूड़ियों पर हंसणा छयाई
जख क्वी छयाई अपणु
उख अब प्रेम रीतू छयाई
भिभराट अब नी राई
छुया बिसकी गीन
पुंगड़ी बांजी पोड़ गीन
मनखी बिसरी गीन
झणी कख हरची गीन
खिलाण अर गुठ्यार
अब ह्वे गीन खन्द्वार
न क्वी सुणदरू
क्वी नी आंद न क्वी लांद रैबार

खोंल्ये ग्यों,
कैकी सिकेत के मा केरू
क्वी नी दिखे
जेकुण बोल तू छे मेरु

एक द्वी दाना सयाणा क दगड भेंट ह्वाई
जाण पछाण अर फिर सेवा सौंधी ह्वाई
मिलण की खुसी, आंख्यू में देखी
नींद मा भी
उंकी जग्वाल देखि की
म्यार आंख्यू मा भी छयाई पाणी
उंकी पीड़ा देखी मन रुझे गे

म्यार पहाड़
टक लगे की बुलाणा छन
पर ‘प्रतिबिम्ब’ जौ कनके की
यू ही सुचदु रे ग्यों
यूं ही सुचदु रे ग्यों ...

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, दुबई

(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)