शनिवार, 23 जून 2012

क्रिमुलोँ सी धार !

"क्रिमुलोँ सी धार
बगणी छन उन्धार
क्वी बिँग्लु सार
क्वी बतालु बिचार
सुँग-सुँगऽसुँग-सुँगऽ
ऐका का पिछ्याड़ी द्वी
द्वीकोँ का पिछ्याड़ी...
अब क्या ब्वन
क्रिमुला भी जान्दा
बौड़ी कै त आन्दा
अपणा पुथलोँ तेँ
दुध-बाड़ी ल्यान्दा
य त क्रिमुलोँ से
परे ह्वै गै
बान्दरोँ सी ठटा ल्गै कै
अपणा काखी पै चिपकै कै
गरुड़ जनी उडै गै
जरा वैँ कु भी त स्वाचौँ
जौन काखी पै चिपकै कै
दूधैक धार गिचा पै लगै कै
अपणा खुच्ली मा सैवायी
जरा स्वाच...
जख तू रलौ
वखी बरकत रैली!" 

महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद
© सर्वाधिकार सुरक्षित 
23/06/2012

(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

सोमवार, 18 जून 2012

उड़ जै रे पंछी तू


उड़ जै रे पंछी तू
जै के इति दूर,
पंख लगे के जाई तू
जाई तू फ़ूर-फूर...
         
मुख मा त्यारा एक तिरण
जन लगदी सौ किरणों की घाम,
त्यारा इन तिरणों से ही हवायी
ये संसार का सारे धाम।

उड़ जै रे पंछी तू ...

त्यारा इन तिरणों को यू घ्वोल
जन लगदी कटोरी सुनै की,
त्यारा इन घ्वोलों से ही
सीख ल्यही ब्रह्मैं की।

उड़ जै रे पंछी तू ...

त्यारा घ्वोलों मा यूं प्वोथील
ज़्वु लगड़ा द्येव स्वरूप,
त्यारा इन प्वोठीलों से ही
बन्यू मन्ख्यैं कौ रूप॥
 महेन्द्र सिंह राणा आजाद
© सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनाँक -   ०५/०२/२००६


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)