शुक्रवार, 27 मई 2011

कुजणि ज्या हुणों हवालों



     
       तेर मने की छ्वीं
मेर जिकुडी मा
कुतगली लगे जंदीन

कुयेड़ लग्यु हवाल जन
कन मा दिखुलूँ तेर मुखड़ि
नी बुथै सकणु छौं ये मन ते

सुचणु छौं क्या बोल
जणदु छौं क्या बुल्ण
पर बोलि नी सकणु छौं

रगरयाणु रेंद इनै उनै
कखि बिसरी नी जौं
तबि बरणाणु रेंद त्यार नौं

हरची च निंद
पर सुपिणा दिखणु रेंद
इन पैल कबि नी ह्वाई

केकि खाणी केकि पीणी
हरचि ग्याई भूख तीस
कुजणि ज्या ह्वै हवालों

जुन्यालि रात मा
तारा गीणणु रेंदु
त्वै सोचि की बचाणु रेंदु

जख तख,भीतर भैर
त्वी नज़र आंदी
बौलेयूं त नी गयूं मी कखि


        कुजणि ज्या ह्वे हवालो

                                                   प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल

(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)