शनिवार, 1 मई 2010

ग्वेर छोरो क दगडी मा

गोर चराण जै छ भै मै, ग्वेर छोरो क दगडी मा
बल्द कि जोडी उ लडादिन, बुलदीन हुरर- हुरर हां
सडकी कि बाठी गोर लिजादिन, रोड करदिन बन्द हां
जन गाडी रुकदी भयो, ढुगं फ़िकदन टोल मां
ग्वेरू छोरा..................
गोर चराण जै छ भै मै, ग्वेर छोरो क दगडी मा
बल्द कि जोडी उ लडादिन, बुलदीन हुरर- हुरर हां
बुलदीन हुरर- हुरर हां बुलदीन हुरर- हुरर हां - (कोरस)

गोर-बखर छोडी जगंल, ये जान्दीन उ सडकी मा
पिल्ला बणै तै गोली खिना छन, मस्त हुया छन खेलो मा
घर जाण कि येयी बारी, गोर पहुच्या छ्न धारी मा
गोर चराण जै छ भै मै ग्वेर छोरो क दगड मा
ग्वेरू छोरा..................
गोर चराण जै छ भै मै, ग्वेर छोरो क दगडी मा
बल्द कि जोडी उ लडादिन, बुलदीन हुरर- हुरर हां
बुलदीन हुरर- हुरर हां, बुलदीन हुरर- हुरर हां - (कोरस)

क्वी-क्वी छोरा ईन भी होदन, छुट छोरो मा लडै करादिन
छुट छोरो तै पिटी-पिटी खन, गोरो तै भी उ डिकादिन
बड-बड ग्वेरू येस कना छ्न, छुट्टो क बुरा हाल हां
गोर चराण जै छ भै मै ग्वेर छोरो क दगड मा
ग्वेरू छोरा..................
गोर चराण जै छ भै मै, ग्वेर छोरो क दगडी मा
बल्द कि जोडी उ लडादिन, बुलदीन हुरर- हुरर हां
बुलदीन हुरर- हुरर हां बुलदीन हुरर- हुरर हां - (कोरस)

क्वी चौलं क्वी तेल ल्यादू, क्वी लेन्दू आलु प्याज हां
ग्वेरू खिचडी बण छ तख, घनघोर जगलों बीच मा
कन बडी मौज औन्दी भयो, खैक ग्वेरु खिचडी हां
गोर चराण जै छ भै मै ग्वेर छोरो क दगड मा
ग्वेरू छोरा..................
गोर चराण जै छ भै मै, ग्वेर छोरो क दगडी मा
बल्द कि जोडी उ लडादिन, बुलदीन हुरर- हुरर हां
बुलदीन हुरर- हुरर हां बुलदीन हुरर- हुरर हां - (कोरस)

आम फ़लेन्डू कि डाली मा जादन, दगडियों तै भी खुब खिलादिन
थैला भोरी तै कान्दी टन्कियू छ, बाठ-बटुयों तै भी देंदन
आम फ़लेन्डू खैक भयो, मन होन्दू तरोट हां
गोर चराण जै छ भै मै ग्वेर छोरो क दगड मा
ग्वेरू छोरा..................
गोर चराण जै छ भै मै, ग्वेरू छोरो क दगडी मा
बल्द कि जोडी उ लडादिन, बुलदीन हुरर- हुरर हां
बुलदीन हुरर- हुरर हां बुलदीन हुरर- हुरर हां - (कोरस)

गोर चराण जै छ भै मै, ग्वेरू छोरो क दगडी मा
बल्द कि जोडी उ लडादिन, बुलदीन हुरर- हुरर हां
बुलदीन हुरर- हुरर हां, बुलदीन हुरर- हुरर हां
बुलदीन हुरर- हुरर हां, बुलदीन हुरर- हुरर हां.......

गीतकार - विनोद जेठुडी - दगडिया उत्तराखन्डी
www.vinodjethuri.blogspot.com


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

रविवार, 25 अप्रैल 2010

माँ मितै बडुलि लगदी..


~  माँ मितै बडुलि लगदी  ~

जब जब मितै याद तेरी औंदि माँ,
तब तब मितै बडुलि भी लगदी माँ।

तू भी माँ मितै याद करणि होली,
रूणी कथका तेरी जिकुडी होलि।
आंखि तेरि भी माँ रुझणि होलि,
बडुलि त्वै ते भी लगणि होली।

तेरी आंख्यू न सदा खुशी देखि मेरी,
आज वू आंख्यू मा पाणी च तेरी|
मन मा तेरो कुलबुलाट मच्यू होलू,
जिकुडी तेरी सुगबुगहाट करणी होली। 

दूधा-भत्ति अर जू बोली मीतै खिलायी,
दुधि बाली गै कन तीन मीतै सुलायी।
कन हूंदो च सुख यू भी तीन नी जाणी|
बस हर दुख म्यार तीन अप्णु जाणी।

कथुका बगत  नज़र तीन मेरि उतारी,
अफु भुखि रेकन पुटगि तीन मेरि भ्वारी।
कुशल रंवा हम वाकुण ब्रत तीना धारी,
उम्र तीना घर बणान मा काटी सारी

,
त्यार आंचल मा छुप्य़ू च ब्रह्मांड इन बुदिन, 
त्यार हथ सदनि आश्रीवाद कुण ही उठिन।
तेरी खुशियूँ की खातिर करी मीन नौकरी,
निभाणू छौ अब बाल-बच्चो की जिम्मेदारी।

रूणि नी रेई तू तख मेरी माँ,
छौ कुशल मंगल मी इख माँ।
करदू प्रार्थना हथ जोडी मेरी  माँ,
राजी खुशी रैई तू तख मेरी माँ।

ओलु छुट्टी दर्शन त्यार मी करलू,
त्यार हथ क स्वाद फिर मी च्खलू।
जख बुललि उख त्वैते मी घुमोलु,
तेरी सुणलु अर अपणी मी सुणोलु।

कनु हूंद भगवान मिल नी जानि,
तु ही छै सब कुछ यू मीन मानि।
मीन भगवान सदेनि त्वैमा देखि,
यां से अगनै मी नी सकदू लेखि।

जब जब मितै याद तेरी औंदि माँ,
तब तब मितै बडुलि भी लगदी माँ।

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

(सबी माँओ ते समर्पित या कविता)


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