शनिवार, 29 जनवरी 2011

ब्रेकिंग न्यूज " भुल्ला गोल " (द्वारा - पराशर गौड)




टेलीबिजन पर खबर छे चनी कि, एकाएक खबर बंचण वलाल बीच्मै खबर रोकी बोली -- " प्रिय सुनण बालो , आप थै मी एक, ब्रेकिंग न्यूज छो बताणु ! अभी अभी हमरा सम्बादाता खबरची सिंघल एक जरुरी खबर भेजी कि पहाड़ी भुल्ला ( उत्तराखंड ) गोल ह्वेगी ! याने हर्ची गे ! जै थै भी मिल जाव या कखी दिखेजा त तुरन्तु देहरादून माँ बिधान सभा का अग्वाड़ी घड्यालु धोरी चंदरसिंह गड्वाली या इन्दर मोहन बडूनी सूचित करीनी ! सूचित करण वालो थै बतौर इनाम का उ थै " बड़ा भैजी " ( मुख्या मंत्री ) पद से समानित करे जालु !

ये पहाड़ी भुल्ला कि उम्र १० साल अर कुछ मैना कि च ! ब्ये -बाबुकू त, कुछ आता प़ता नी ! पर हां, सुणम आई कि जनि पैदा हवे छो ! बड़ा भैज्युन ये थै समणी कैकी अपणी अपणी मवासी बणऩे



कि सोची याली छे ! १० सालम उनत द्वी बड़ा भैजी हूँण चैदा छा ! अर, छे भी छा ! हत अर कमल ! पर गजब ही हवे , येल द्वी का बजाह १० सालम पट ५ दिखनी ! शैद ये भुला पर यून , जरूरत से ज्यादा दबो डालिदे जणी ! हवे सकद येकी उन्न्नती अर प्रगति पर उन ध्यान ही, नी दे हो ! क्या पता उन येसे क्या क्या बादा कै होला ! क्या पता यून वेसे बोली हो, कि हम , त्वे खुणी दुसान्दम ( गैरीसैण ) एक मकान लागोला ! जख बीटी तू द्वी जनै देखि सकली ! क्या पता बोली होलू कि, तू अपणा भाई बन्दों से बे- रोक टक्का मिल सकदी ! अर कैथे मीलणी दे हो ? क्या पता ! यु द्वी भयुन कमल अर हतल १० साल माँ ये पर न जाणी क्या क्या कै हो ? यु हालम, अर परेशानिम ! शैद बिचरल गोल हुणेम ही अपणी भलै समझे हो !

जनता से अपील च कि वो लालबती माँ बैठ्या सफ़ेद कुर्ता सुलार धारी यु बड़ा- छुटा भैज्यु थै जरुर दिख्या ! क्या पत्ता यून मयारू ये भुला थै अपणा स्वार्थ का बाण कखी अपणा किस्सा हुन्द त नी लुकायु होलु ! या फिर गिर्दा ,या नरेंदर सिंह नेगी या पराशर कि कविता , गीत य व्यंग माँ दिखया ! ये भुलल यु १० सालो माँ कै मंत्री ,कै सचिब , कै स्कीम दिखिनी ! इ भी हवे सकद कि युकी रात दिने कि झूठी कस्मा बादो से तंग येकी काखी लुक्की गे हो ? आजा जु बड़ा भैजी ( बतमान मुख्य मंत्री ) छन ! उसे बिशेष रूप से दर खासत च कि अगर आप अभी नी खुजैल्या वे थै अर वेका बारम नी सुचिल्या त आन वाला समय माँ आप अफु थै भी खुज्याँणम भी मुश्किल हवे जाली !

पराशर गौर
दिनाक २८ जनबरी २०११ समय ८.१६ रात



(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

बाटा / गुर्बटा ( द्वारा - पराशर गौर )








मी थै,
तलाश च, उ बाटों की
जु, पौचै दी मीथै
वापस म्यारा गौं !

बरसू पैली,
जौ बाटो , गुर्बटो, पगडण्डी बटी
लामुन्डदु फिसल्दु, सम्भाल्दु
पुंगड्यू की मिंड्यू थामी थामी
एगे छो ,
उ सब्यु थै छोडि
एक नई दिशा की तलाश माँ !

खुटा,
अभी भी चानलणा छन
बराबर एक नई दिशा की खोज माँ !
नजर ,
अभी भी खुज्याणी छन
नया बाटो थै !

पर,
वो बाटा , वो गुर्बटा जु
अभी भी म्यारा जहनम छन
जोंकी तासबीर ,
दिन -प्रति -दिन धुंधली हुणी छन
कही हर्ची नि जै वो ?
हरचण पैली, एक बार ....
उ बाटो से फिर गुजन चांदू !

जैमा मेरु बचपन बीती
मिन हिटण सीखी
एक बार ,
उ पुग़ड्यू की मीन्ड्यु थै छुण चांदु
जै की माटिकी सौंधी गंध
अभी भी मेरी हाथ ग्वालियु म चिपकी च !

पराशर गौर
कापी@राईट
२६ जनबरी २०११ समय २ बजे दिनम




(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)