शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

कौणि झुंगरो पाकलो

कौणि झुंगरो पाकलो 
(स्व. श्री कन्हैया लाल डंडरियाल)
कविता संग्रह " कुयेडी " बटि





(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

रविवार, 11 जुलाई 2010

ना प्यावा ये दारु


लखड जैगी तै कोयला निकाली, बणी जान्दू उ खारु
जिकुडी सरै फुकी याली तुमन, पी पी क यू दारू
पी पी क यू दारू,   पी पी क यू दारू !!!!! (पत्नि)
लखड जौगी तै कोयला निकाली, बणी जान्दू उ खारू
येकू बगैर मी पट मरी जौलू, यू छ मेरु सहारू...
यू छ मेरु सहारू,  यू छ मेरु सहारू !!!  (पति)

पैसा पायी जु भी छ घर मा सब पी याली दारू
सोच ना फ़िकर तुमतै हमारी, अगने अब क्या हवालू ?
अगने अब क्या हवालू , अगने अब क्या हवालू ? (पत्नि)
तू किलैयी चिंता करदी, यू काम छ म्यारू..
ढुंग फोडी तै मेहनत करलू, पैसा मी कमौलू
पैसा मी कमौलू हे प्यारी पैसा मी कमौलू...!! (पति)

बाझ पुडियान वा घर कुडी, जख बणदी या दारू
गौणू तकातू बिकी गे म्यारू, ले ले क ये दारू..
ले ले क ये दारू, ले ले क ये दारू!! (पत्नि)
गाली नी दे चुप बैठी रै, निथर देख मुछ्यालू..
बाझ पडी जाल ऊ घर ता, कखन प्योलू मी दारू ?
कखन प्योलू मी दारू, कखन प्योलू मी दारू ???(पति)

तुमहारू दगडी ब्यो करी तै, किस्मत फुटी मेरी
घर गौं बच्चो छोडी तुमतै, या दारू छ प्यारी..!
या दारू छ प्यारी, या दारू छ प्यारी ..!!!!! (पत्नि)
प्याणी दे तू चुपचाप मीतै, भेजा ना खा म्यारू.
नीथर पीटी-पीटी त्वेतै, मैत भेजी मै दयोलू..
मैत भेजी मै दयोलू , मैत भेजी मै दयोलू...!! (पति)

हाथ जुडियान तुमतै हमारू, ना प्यावा ये दारू
घ्यू-दुध तुम खाओ चाहे, पर ना प्यावा ये दारु..
ना प्यावा ये दारु, ना प्यावा ये दारु !!! (पत्नि)
घी-दुध मा कख झी औन्दु, स्वाद जन ये दारू
यु लगदु मै अम्रत समान, यू छ मेरु सहारू 
यू छ मेरु सहारू , यू छ मेरु सहारू !! (पति)

लखड जैगी तै कोयला निकाली, बणी जान्दू उ खारु
जिकुडी सरै फुकी याली तुमन, पी पी क यू दारू
पी पी क यू दारू,   पी पी क यू दारू !!!!! (पत्नि)
लखड जौगी तै कोयला निकाली, बणी जान्दू उ खारू
येकू बगैर मी पट मरी जौलू, यू छ मेरु सहारू...
यू छ मेरु सहारू,  यू छ मेरु सहारू !!!  (पति)

Copyright © 2010 Vinod Jethuri
www.vinodjethuri.blogspot.com

(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)