गुरुवार, 29 जुलाई 2010

गढ़वाली गीत (अपणू घौर बार देख ल्या)


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

1 टिप्पणी:

  1. सुशील जी सुंदर कविता कुण कु धन्यवाद अर ये ब्लाग मा पैली त आपक स्वागत च।

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