गुरुवार, 26 अगस्त 2010

हम छोडिक चली ग्या यी महफिल तै

हम छोड चले है महफिल को याद आये कभी तो मत रोना
(गढवाली मे अनुवाद करने का एक प्रयास)

हम छोडिक चली ग्या यी महफिल तै,
याद एली अगर त रवै न कभी
यी जिकुडी ते बुथै लेई तू,
घबरालु अगर त रवै न कभी
हम छोडिक चली ग्या यी महफिल तै

एक सुपिन सी देखी छ्याइ हमनू
जब आंख ख्वाली त टूटि ग्याई
यु प्यार अगर सुपिन बनि की
तडपाल तुझे त रवै न कभी
हम छोडिक चली ग्या यी महफिल तै

तु म्यार ख्यालो मे
बरबाद नी कैरी अपर जीवन तै
जब क्वी दगड्या बात त्वै तै
समझालू त रवै न कभी
हम छोडिक चली ग्या यी महफिल तै

जीवन का सफर मा यखुली
मितै त जिन्दा नी छ्वाडली
मुरण की खबर ये मेरी जिकुडी
मिलली त रवै न कभी
हम छोडिक चली ग्या यी महफिल तै

- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल



(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

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