शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

ब्वाला जी...

ददा-ददी, नना-ननी सच बुल्दू छ्याई
हमर पहाड मा देवी - दिवता रेंद छयाई
आज भी छीं देवी - दिबता पर रुठया छन
कखि हमर पूर्वजो ते ठेस नी लगी होलि

ब्वाला जी यूँ तो मनाणा कु क्या कन

डांडी कांठियूँ मा घुघुती घुरुदी छैई
अब कुजाण कख गुम ह्वे होलि
रौतेली शान छैई उत्तराखंड की
अब कुजाण जख हरचि होलि

ब्वाला जी अब कख  खुजोला

हेरी भेरी छै पुंगडी, डाल बूटि छ्याई हंसद
बिसर गंवा हम कन दिखेदं छ्याई यू सब
नदियू देखि प्राण हेरु  हून्दू छ्याई वेबरि
आज कखि बांध बणि गै कखि धरती मा समे गै

ब्वाला जी कन मा रुकालो यू बदलाव

क्या बुलणा अब कैकि नज़र  लगी होलि
आज दिखाणा छंवा हम की प्रलय मची
उत्तराखंड मा आज फिर पाणी पाणी हुयँ
पहाड टुटणा छन अर गंगा विकराल बणी

ब्वाला जी कन मा होलु यांकू समाधान

-       प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

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