गुरुवार, 27 जनवरी 2011

बाटा / गुर्बटा ( द्वारा - पराशर गौर )








मी थै,
तलाश च, उ बाटों की
जु, पौचै दी मीथै
वापस म्यारा गौं !

बरसू पैली,
जौ बाटो , गुर्बटो, पगडण्डी बटी
लामुन्डदु फिसल्दु, सम्भाल्दु
पुंगड्यू की मिंड्यू थामी थामी
एगे छो ,
उ सब्यु थै छोडि
एक नई दिशा की तलाश माँ !

खुटा,
अभी भी चानलणा छन
बराबर एक नई दिशा की खोज माँ !
नजर ,
अभी भी खुज्याणी छन
नया बाटो थै !

पर,
वो बाटा , वो गुर्बटा जु
अभी भी म्यारा जहनम छन
जोंकी तासबीर ,
दिन -प्रति -दिन धुंधली हुणी छन
कही हर्ची नि जै वो ?
हरचण पैली, एक बार ....
उ बाटो से फिर गुजन चांदू !

जैमा मेरु बचपन बीती
मिन हिटण सीखी
एक बार ,
उ पुग़ड्यू की मीन्ड्यु थै छुण चांदु
जै की माटिकी सौंधी गंध
अभी भी मेरी हाथ ग्वालियु म चिपकी च !

पराशर गौर
कापी@राईट
२६ जनबरी २०११ समय २ बजे दिनम




(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

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