शनिवार, 21 मई 2011

यखुलि......



बरसों बटि छौं, इखम ही
कथगा मौसम दिखेनी
आन्द जांद ये बाटा मा
कथुक मन्खि दिखेनी
साक्षी छौं अपणों कु
खुसि अर दु:खो कु



इनै उनै खूब
चका चौंध रेंदि छै कभी
आज भी च
धरती अर अगास उनी
सुंदरता की चदरी लिया छन
मी फिर भी छौं यखुलि

पैल
मी भी सामिल छ्याई
यीं सुंदरता मा
सौण भादू कु रंग
मी पर भी चढ़दु छ्याई
बंसत भी
मे देखि सरमान्दी छैई
हर कवी मेर बात करदु छ्याई
म्यार साखों,पत्तो, फूल अर फलों ते
अपणु बणान्दा छ्याई
छैल बैठ्णा कुण
सबी, मिते खुजदु छ्याई
थक बिसारी की
कथका सुपीन स्जांद छ्याई
मी अफी भीजि की
तुमते बचान्दु छ्याई
नॉन - बाल भी
मीउंद झुलेंद छयाई
चखुलों को चुंचयांट
क दगड़ी खुश हून्द छ्याई

अब, टेम बदले ग्याई
मी भी, वू नी रयाई
मेर खुशी अर मेर उम्र
कुछ मौसम न अर
कुछ अपणौन छीनयाली
कथगा मनखि अपना स्वार्थ  कुण
म्यार दगड़यों ते काटि गीनि
बच्यु छौं अभी तक...... 

अभी भी यखुलि, मौन खडू छौं
अब त सुख ग्याई मेर काया
अब न केकु मोह न केकि माया
ना कवी दिखदू न कवी दिखेन्दु
जो मुड़ी जान्दु बौड़ी नी आँदू

यखुलि छौं अभी....   
जन भी छौ तुमर समणी छौ
फिर भी अपणू जाणी
तुममा अपनी पछाण
छोड़ी क जाणु छौं
जैबर तक रख सकल्या  
संभाली की, सहेजी की
निथर म्यार अस्तित्व त
समय क दगड़ी
माटा मा मिल जालू
पर म्यार आसिरबाद
तुम दगड़ी सदेनी रालू

अभी त मी यखुलि छौं .....
-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
      [KESS 2011 मे प्रस्तुत ]


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

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