मंगलवार, 14 जुलाई 2015

ठेठ पहाडी





सुबेर साम अद्धी कच्ची पीणू रेंद
बौन्ला बिटे की मी गुराण्नू रेंद
जू नी बोल साक कबी
झांझी बणिक मी बरराणू रेंद

द्वी घूट भीतर जन्दीन त
असली मनखी फिर भेर आन्दू  
क्जायान्णी ते कच्याणू रेंद
नौनियालो ते धम्काणो रेंद

गों का मनखी तब बौग मारी लिंदीन
अर मी दिन मा भी तारा गिणनू रेंद
छौं मी ठेठ पहाड़ी, पछाण ल्यावा
बिना खयां [ सिकार] पियाँ [ दारु] रौंस नी आंदी

के बिगरेल मनखी न ब्वालि हवालो कि
सूर्या अस्त त पहाड़ हवे जान्द मस्त
मी  त दिन रात करदू खान्णी पीन्णी,

पेली मस्त  फिर से जान्दू फिर मी ह्वेकन पस्त 

- प्रतिबिम्ब  बड़थ्वाल 


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

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