शनिवार, 8 अगस्त 2015

कसूर


यूं डांडी कान्ठियू क, ब्वाला क्या च कसूर 
यूं रीता कूड़ी बाड़ीयू क, ब्वाला क्या च कसूर 
किले हुयां छन मनखी, अपरी जलमभूमि से दूर 
कूड़ी पुन्गडी अपणा बांजा करीक, बसी गीन दूर

उन्द जेकन उबक बाटू अब क्वी नी दिखदू 
कथका धे लगाणू छौं, पर अब क्वी नी सुणदू
भासा ज़रा ज़रा क्वी बचांद, बाकी क्वी नी बिंग्दू
सबी कुमौनी गढ़वली, क्वी उत्तराखंडी नी दिखेंदू

दसा पर मेरी, तुमन कलम अपरी खूब तुडीन
गीत तुमन भी म्यार इने विने भी खूब लगेन 
देस विदेस मा मेला खेला तुमन खूब करीन
म्यार नाम पर जगह जगह नोट खूब लुटीन

दीणा कू क्या जी नी दे, ये पहाड़ा न तुमते 
बचपन बटी जवनी तक सैंती पाली अर पोसी
कुछ करण कू बगत आई, तुमन बस बोग मारी 
मीते यखुली छोडी, परदेस मा करी जमे सारी

अबी कुछ नी बिगड़ी, सोची समझी बौडी आवा
अपरी जन्मभूमि ते देर सुबेर ज़रा देखी जावा
बाळ बच्चो ते लावा, वूं ते मेरी पछाण बतावा
जलमभूमि ब्वै समान हूंद, यू तुम जाणी ल्यावा  


-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

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