रविवार, 11 अप्रैल 2010

ठय़करया



ठय़करया
(स्वर्गीय श्री कन्हैया लाल डंडरियाल  की कविता संग्रह "अंज़वाल "  से)

घार भटि अयाँ क हम, गढवली भुल्याक है।
जरs जरा विदेश की, अद्क्ची फुक्या क है।।

जन्म के उछ्यादि थे, विद्दा की कदर न की।
कंडलि की झपाग खै, ब्वै की अर बुबाकि भी।।
जा रहे थे ब्वल्क्या ल्हे, एक दिन स्कूल  को।
मूड कुछ बिगड गया, अदबटम भज्याँ क है।।

घार भटि अयाँ क हम, गढवली भुल्याक है।
जरs जरा विदेश की, अद्क्ची फुक्या क है।।

कै गुजरु इनै वनै, पोडि सडकी क किनर।
गौं वलो या मित्रु का, घौर कै कभी डिनर।।
कुछ रकम थी फीस की, कुछ चुराई ड्वारदैं।
खर्चे के पुकै पुकै, मैना धग्ल्याग क है।।

घार भटि अयाँ क हम, गढवली भुल्याक है।
जरs जरा विदेश की, अद्क्ची फुक्या क है।।

टैकनिकल जौब में, हाथ काले क्यो करे।
करि किलै कुली गिरी, व्यर्थ बोझ से मरे।।
डिगचि डिपार्ट्मेंट का, डिपुटि हम बण्या क है।
तीस रुपया रोटि ल्हे, जुल्फा झट्क्यां क है।।

घार भटि अयाँ क हम, गढवली भुल्याक है।
जरs जरा विदेश की, अद्क्ची फुक्या क है।।

क्या कहे पहाड से, तंग हम ते आ गये।
च्य़ुडा भट बुकै-बुकै, दांत खचपचा गये।।
कौण्यल्वी गल्वाड से, कवल्णि तक पटा गई।
अब तो ठाट से यंहा, पान लवलयाँ क है।।

घार भटि अयाँ क हम, गढवली भुल्याक है।
जरs जरा विदेश की, अद्क्ची फुक्या क है।।


अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली।

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