बुधवार, 14 अप्रैल 2010

देर-सुबेर (एक नाटक)



देर-सुबेर (एक नाटक)

चार लोग [सिपै : सुबेदार राम सिंह, जग्गू: बामण पं जगदम्बा 'जग्गू दा', हल्या: मनोहर उर्फ मनु, बुढ्या: ब्वाडा]

सिपै: [गाणा गै की प्रवेश - मेरी डांडीयू कांठियू का मुल्क जैलू.... ] अरे कख गीन सब लोग!! दिखेणा नी छन। क्या बात अकाल पोडी गै या हैजा खे गे सबो ते। चार साल बाद आणू छौ अर कथूक बदिल गै म्यार गांव्. ना त पुंगडी हसणा छन न डाला बूटा बुलाणा छन्। क्या ह्वे ह्वालो कै की बुरी नज़र लगी होलि।

(धै लगाण बैठी--हे काका, हे ब्वाडा, हे मन्नू , जग्गू अरे मी आ गंयो कख छवां तुम लोग्।)

[मनु क आणू ]

मनु: अबे राम सिंह केबर अये भै तू। खूब सेहत बणी तेरी। किले छे बरराणु तू?

सिपै;  मन्नू द्ग्डया कन छै तू.हां भै फौजी आदिम छौ सेहत त चैणी ल्गी निथर कन मा देश क ऱक्षा करलु। यू बता क्या ह्वे क्वी नी दिखेनू च कख छन सब पलट्न हमर गांव की?

मनु: अरे पुछी न तू स्बलोग बिसरी गीन, जू उंद जांदू फिर घर क बाटू नी दिखदू अब गीण - गाणिक 4 परिवार रेगिन।

 

[जग्गू का आण - मंत्रो क उच्चारण क दगडी और राम सिहं ते गला मिलीक ]

 

जग्गू: क्या बात कब पोंछी तू भुल्ला कन च त्यार परिवार ?

सिपै: बस दादा गुजारु चनु चा एक छुट्टु च एक तै अभी स्कूल मा दाखिल करे। इख हूंदा त मी भी टैम से आनु रेंद अर खर्चा पानी भी ह्वे जांद अर बांझ पुड्या पंगडा भी सांस लीना रेंद। डाडीयू कांठियू की खुद भी बिसरे ज्यादिं। क्या कन वा भी नी आण चांदि,वा भी रम गै उख

जग्गू: अरे दगड्यो, पिछला साल मी दिल्ली गै छ्याई अरे प्रिथु भैजी क नोन मिली मितै पैली त वे न पछाणी नी च।फिर याद दिले मिन। अबे क्या लाड साब बण्यू उख। मी गढव्ली मा बुनु अर उ हिन्दी मा अर अंग्रेजी मा। पता नी जब वू लोग इख छाई तैबर त ठैट बुल्दु छ्याई

मनु: अरे सब भैर ज्याकि सब अंग्रेज़ बणी गीन. डड्रियाल जी क व कविता याद आणि " घर भटैक अयां कि गढवली भुल्याक है ज़रा ज़रा विदेश की अधकची फुक्याक है"

[सिपै व जग्गु सभी हस्न बैठिगीन]

सिपै: अरे इन च सभी क दगडी या बात नी च. आजकल का जमाना क दगडी चलना कुण या अच्छी खबर च कि अब हमर बेटा-बेटी, भुला-भुली सब अगनै बढिगीन. पर कई लोग छन जूं का प्रेम अप्णु उत्तराचल क दग्डी उथ्कु ही चा अर नो भी कमाणा छन. बस ज़रा हमर राज्य अर गावो मा भी सुधार ह्वे जाओ त फिर लोग ज़रा कम जाला। शायद उख भटै इख भी आवन लोग अब।

जग्गू: हां ज़रा शिक्षा मा सुधार चेणू च

मनु: खेती बाडी अर स्वास्थ्य क भी ध्यान करी लीदं त अच्छू हूंद गांवो मा अभी भी सुविधा नी छन।

सिपै: अरे अब हमर लोग समझेण बैठि गिन, अब त उत्तराखंड बणी गै त लुखो क उम्मीद भी और बढि गैन. अब उम्मीद च कि पलायन पर थोडा विराम लगालू।

[खंसदू खसंदू ब्वाडा जी क आण ....]

ब्वाडा : अरे को चा आवाज त सुणनू छौ पर यू फुटायां आख्यू नी दिखेदू। अब कुछ इन लगणू भीड ह्वेग्या इखम

[ सब खुटा छुण बैठीन ]

सिपै: ब्वाडा मी छौ हवल्दार राम सिंह - पान सिंह का नोनू ' अर भीड़ नी च बस मी ,ज्ग्गू अर मनु बस

ब्वाडा: अरे पाना क नोनू कख भटैक भूलि रस्ता तू अपर गौ क. इख त अब क्वी भी नी दिखेंदु। अर भीड....अर तीन आदिम भी भीड लगदी अब पैली त क्वी आंद् नी च अर आला भी त हम तै देखि मुख फरक्या दिंदीन. क्वी ध्वार् भी नी आंदू जांद।

जग्गु: अरे बाढा हम त आणा ही रंद्वा तेरी खोज खबरी लीणा कु कि अभी बच्यु च ब्वाढा की ना।

मनु : चिंता नी केरी ब्वाडा त्वे तै कंधा कुन हम द्वी अर द्वी हेक का गओ भटिक ल्योला किलै छै फिकर करणी

सिपै: अरे किले बुना छवा तन, ब्वाडा त म्यार नोनो क ब्याह कर्याकन ही जालू. किले ब्वाडा?

.... अर तुम लोग सुणाओ क्या हाल छन? क्या कना रंदवा तुम लोग आजकल..टैम पास होणु च कि कामकाज भी?

मनु: अरे अब त जनी तनी कै कि अपरु हल लगै दींदू. गुजर बसर हुणु च. अर बाकि राम जी क मर्जी। अबै ‘राम’ तेरी ना.... भगवान राम जी की!!! पैली त 5-6 मौ क हल लगाणु कू मिल जांद छयाई अब के कुण लगाण

जग्गू : हां अब जज्मान भी क्वी नी च इख या अगल बगल गांव मा. पूजा पाति त बस नामकुन च. स्कूल मा बच्चा भी न छन अर मास्टर भी नी छन। त कैबर मी चल जांदू पढाण कुण द्वी चार बच्चो तै थोडा बहुत मन लग जांद निथर कुछ नी नच्यू ये गांव मा

ब्वाडा: अरे पैली क्या हर्यू भर्यू छयाई. लोड बालो कु शोर्गुल मा आनन्द आंदू छ्याओ, अच्छु बुरु, ब्याह शादी अर काम काज मा एक दुसरा का सुख दुख मा सब दगडी छयाई भिभराट मंच्यू रेंद छयाई

ब्वारी बेटी सब अगने पिछने सेवा मा हाजिर, नोना नाती नातण सब इज्जत दींदा छ्याई / खूब रोनक रेंदी छै अब न आप्णु ना बिरणु, हर्चि गीन सब काश म्यार जाण से पैली एक बार म्यार गांव कि वा पुरनी छवि देखि सक्दू, आंख्यू ना भी त कम से कम महसूस कैरी लींद...

सिपै: ब्वाडा त्यार मन क दुख मी समझनू छौ. मन त म्यार भी करदू अर बस कमाण अर परिवार क खातिर चल गै छौ मी लेकिन अब मीन सोचि आलि कि मी अगली साल बच्चो तै इख ल्योल अर फिर द्वी साल मा म्यार रिटायर्मेट भी च त मी अपरू जन्म्भूमि मा वापिस ओलू फिर अपरु गौ ते उनी बणान क कोशिश कर्ल्यु आप लुखो क दगड मिलीक. यू डाडी कांठियू तै फिर से रौन्तुली बणाण कि कोशिश करला।

जग्गु: अब मीतै एक जजमान अर द्वी विद्यार्थी ओर मिल जाल हा हा हा!

मनु: अब त त्यार हल भी मी लगोल... अर त्यार गोर बछरा भी मी ही चरोलु . क्या बुलदि?

सिपै: हां हम सब मिलिक अपरो गौं की हंसी-खुशी वापिस लोला अर अगने बढौला

ब्वाडा; कथुक दिनु बाद या खुसि मिल. चलो प्राण भलि जाला पर तुम लुखो कि बात सुणि क मीतै खुसि च कि अब सैद बाकि लोग भी अपर गांव, पहाड क प्रति केवल लगाव ही नी राखल बलिक ये तै हेरू भेरु बणान मा भी अपरी भूमिका निभाल

( सब मिलीकन : हम अपरी भरसक प्रयत्न करला कि अपणू उत्तरखंड का लुखो क हर प्रकार से सह्योग करला जै भी रुप मा ह्वे साकू। चाहे इख रोला या उख और उन सभी बूढि आंखयू का सपनो ते नयू आयाम दयूला।)

 

लेखक: प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, अबु धाबी, यूएई

 



(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली।)

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह भैजी पलायन पर लिखी बहुत ही बढिया कहानी.....
    आज का समय पर सुख- सुविधाओ कु अभाव मा लोग पलायन करना छन ........पर ईक दिन ईन आलु जब हम वापस जौला तब तक हमारि जागा जमीन पर कै औरो कु कब्जा कर्यु होलु और फिर हमतै अपणु ही घर मा जगा नी मिलली...
    "जख भी रवा अपणि जडो सि जूड्य़ा रवा" बहुत बढिया सिख यी कहानी सी....
    "जय देवभुमी उत्तराखन्ड जय भारत"

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  2. bhut bhdiya boli aapn hum te apdi shuk suvida khatir apra ghar gaaon te ni chodn chaindu balki bher rhe kar bhi apni jaga jamin ki dekh bhal kari chaindi wa humari pitru ki dini sampda cha hum te.

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  3. bahut achi baat bhaiji mitheye v apni dev bhumi far gaurv cha.
    per ek sandesh yo cha ki apni ghar ,kudi pungadi ni chouduo.

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