शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

जनम भूमि


(स्वर्गीय श्री कन्हयैलाल डंडरियाल जी की कविता"जनम भूमि" ऊंकी कविता संग्रह "कुयेडि" बटि)

मेरी मौत मीथै लिहज़ाणो ल्हिजे लै,
पर डाँडि काँठयू अपणि द्दखणि देंदी। 

जई भूमि मा मिल मनखि जन्मा पाया,
जखा स्वातो को मिल मिठो पाणि प्याया,
नि उपकार वख को मि कुछ कैरि  सैको,
मिथै भूमि से वी क्षमा मगणि देंदी।

जखौ बाडि खैकि मिला पुटुग पाळा,
जखा माट्s मा मिल कथा खेल ख्याला
जऊँ डांडयू का मिल मिठा फल चखीना,
अपणि डाँडियों से विदा मगणि देंदी।

जऊँ डांडियो से मी बडो प्रेम छायो,
जखा गाड गदनों लगदि खुद छै भारी,
तुमू से सदनि कू अलग हूणो छौ मीं,
मिथै खोळू मा ऊँ इतग ब्वलणि देंदी।

उऊँ डांडियो मा मेरे याद कैकी,
गुज़र करणि ह्वैली मेरा सार रैकी,
तेरो-मेरु इतगै दगडु छायु दगड्या,
सिरफ वीमं जैकी इतग ब्वलणि देंदी।

मिला बाटु अपणो सरया काटि याला,
मेरा खुट न जाणी कतग काँडा बैठा,
मेरा पैंथरा भी अभी कतगै आला,
मिथै ऊकुँ रस्ता सफा करणि देंदी।

मिथै कांडाँ बाटा सभी टिपणि दैदी,
म्यरी आखिरी छूवी सभी सूणी ल्हेदी,
मेरी मौत मीथै ल्हिणाणौ  ल्हिजे लै,
परा डांडी - काठयूँ अपणि द्दखणि देंदी।

मेरी मौत मीथै लिहज़ाणो ल्हिजे लै,
पर डाँडि काँठयू अपणि द्दखणि देंदी। 


(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)

6 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी मौत मीथै लिहज़ाणो ल्हिजे लै,
    पर डाँडि काँठयू अपणि द्दखणि देंदी।
    ..... achhu lag janakbhumi ka dard der saber aati hi hai..

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. bot sundar rachna cho yee... apni janma bhumi dagdi pyaar ..dhanyvaad pratibimb ji yee kavita ham tak pahuchana vasta... Dr Nutan Gairola

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  4. Pramod Kaunswal जन्मभूमि से प्यार....और मरते दम तक। लगता है..मैं भी अपने घर की डांडी काठियों - पहाड़ियों को साथ- लेकर चलूं...। कहते हैं एक इच्छा पूछी जाती है... ऐसी मौत की नींद सपनों में चले जाना है। अतिरेकपूर्ण इच्छा अपने लिए किसी दिशा की खोज नहीं..हमारे लिए संदेश होता है। कुछ अनुभूतियां हमारे समग्र लेखन में साथ चलती हैं..मैं तो चलना पसंद करूंगा।.....
    23 अप्रैल को 07:19 बजे ·

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  5. how can Subscribe me this Magazine plz.tel me.

    thanks

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  6. संजीव जी दायी तरफ नीचे लिखा हुआ है अनुसरण करे उस पर क्लिक करे।

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