यु छ मेरु, ऊ छ तेरू
द्वीयोंमा पुडयु झमेलु..!
बिच बचाण गै छ मीता
बणिग्यो ईन जन पिचक्यु गन्देलू
क्या मिललू और क्या ह्वे जालु ?
द्वेष छोडीक प्रेम अपनालू !
भोल कु क्वी पता नी छ लाटू..
पल भर मा पतानी क्या ह्वे जालू !!
ईक बुनू छौ मी छौ बडू..
हैकु बुनू छौ मी नीछ छुटटू !
सभी मनखी एक समान ..
पैसो पर छ क्या भरोशू ? !!
बीच बचोव मा अब नी जौलु !
युं झगडो सी दुर ही रौलु..
अहकार मा स्यो-बाघ बन्या छन
यों बाघो सी मै खये जौलु
"कत्का सुन्दर होली दुनिया
जु मिली जुली क राय
छोडी ईर्श्या, लालस, मनसा
प्रेम कु बाठु अपनाय"...
विनोद जेठुडी
(अपनी बोलि अर अपणी भाषा क दग्डी प्रेम करल्या त अपणी संस्कृति क दगड जुडना मा आसानी होली)
विनोद भुल्ला बात सही च याकां बाना ही मीन पैली कविता जू लेखि "अभी बची च आस" उखमा यू भी लिख्यू च पर मुसकिल या च कि बुल्द सब छन पर करद क्वी नी च। जै दिन हमर लोग यू समझी जाला वे दिन .....
जवाब देंहटाएंDhanybad bhaiji. bahut khubsurat bichar aap ka, meen padhi chha aap ki kavita... sahi baat suruwat ham tai khud bati karni chayendi..
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